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अम्बेडकरवाद क्या है ? सिर्फ दलितों के विकास का माध्यम, या सम्पूर्ण भारत के कल्याणकारी विकासों के साथ अधिकारों की अद्वितीय विचारधारा।

डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर को दलितों का मसीहा कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए जितने प्रयास किये उतने कोई नहीं कर सका, और दलितों की जीवनशैली में सुधार व सामाजिक सुधार का कोई सबसे बड़ा कारण हैं तो वे भीमराव अम्बेडकर ही हैं। बाबा साहब के ज्ञान और कठिन परीक्षण के बाबजूद ही दलित आज नीच उच्च के बंधन से मुक्त हो पाए हैं तथा इन पर होने वाले अत्याचारों में कमी आईं है।

चित्र: बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर

कुछ लोग दलितों के हित के प्रयासों को ही अम्बेडकरवाद समझते है. उन्हें ऐसा है लगता है कि दलितों के जीवन सुधार के प्रयास ही अम्बेडकरवाद है। उनके लिये अम्बेडकरवाद यहीं तक सीमित है। जबकि ऐसा नहीं है, कि अम्बेडकरवाद एक बहुत विस्तृत विचारधारा है । जिसमें भारत तथा दुनिया के कानूनी सुधारों, समान जीवन के सिद्धांत, आधुनिक विकास, अथार्थता के साथ साथ भौतिकता आदि कई अन्य उपयोगी बातों का समावेश है।

माना जाता है कि बाबा साहब अम्बेडकर ने सिर्फ अनुसूचित वर्ग के कल्याण के प्रयास किये, बाबा साहब के बारे में अध्ययन करने पर मालूम होता है कि भारत के उन सभी दबे कुचले, प्रताड़ित, असहाय, मजदूर, किसान, आदि का नेतृत्व किया है, जो किसी भी शासक वर्ग, जमींदार, उद्योगों के मालिकों, कई समाज के लोगो द्वारा कई वर्षों के बिना किसी कारण सताये जा रहे थे।


चित्र: बाबा साहब अपने कार्यालय में।
यह प्रताड़ना जातिगत अर्थात छूआछूत की हो, या सत्ताधारी ताकतों के द्वारा समाज को अकारण दंड देने, किसानों पर अत्यधिक कर थोपने, उनकी जमीनों को हड़पने, मजदूरों को उनके मालिकों द्वारा श्रम का उचित भुगतान न देने, गरीब वर्ग को पढ़ाई का अधिकार न देने की हो। बाबा साहब ने सभी के लिये समान रूप से काम किया है। शायद हो सकता है, कि जो भी व्यक्ति या वर्ग विशेष किसी भी समाज, संस्था या व्यक्ति द्वारा सताया जा रहा हो। तथा उसके सामाजिक अधिकार व कल्याण को बेवजह किसी अनैतिक आधार पर रोका जा रहा हो। बाबा साहब की नजर में वहीं दलित वर्ग है। 


बाबा साहब द्वारा अनुसूचित वर्ग के अलावा सार्वभौमिक भारत के विकास के लिये  किये गये प्रयास।

बाबा साहब द्वारा महिलाओं के अधिकारों संबंधी सुधार के प्रयास

आज पूरे विश्व में महिलाओं अधिकारों के लिये आंदोलन हो रहे है, भारत में भी आज महिला सशक्तिकरण का विषय सबसे अहम मुद्दा है। क्योंकि यह पूरी आधी आबादी के हक की बात है। बाबा साहब द्वारा इन्हीं अधिकारों के लिये आजाद भारत के संविधान में कई प्रावधान जुड़वाने का प्रयास किया गया। जो कि महिलाओं को किसी मजहब तथा किसी समाज द्वारा नहीं दिये गये थे। जैसे स्त्री शिक्षा का कानूनी अधिकार, महिलाओं को पूरी मजदूरी देने संबंधी, पिता की संपत्ति पर पुत्री के समान अधिकार, विवाह की आयु संबंधी प्रावधान, महिलाओं को तलाक का अधिकार, तलाक के बाद गुज़ारा भत्ता तथा संपत्ति का अधिकार, विधवा विवाह का अधिकार, सती प्रथा का विरोध, चुनाव संबंधी तथा मतदान संबंधी अधिकार, महिलाओं को विभिन्न नौकरी तथा संस्थानों में आरक्षण तथा रियायत संबंधी प्रावधान आदि। इनमें से कुछ कानून तो बाबा साहब पारित करा सके। पर कुछ अटके रहे। जैसे कि तीन तलाक निषेध आदि पर अब इस समस्या का हल कानूनी स्तर पर किया जा चुका है। बाबा साहब द्वारा कुछ कानूनों को पारित नहीं करा पाने का कारण, उस समय के लोगों की महिलाओं के प्रति संकीर्ण विचारधारा का होना है। जबकि भारत एक बहुत बड़ा समाज व अत्यधिक जनसंख्या प्रतिशत महिलाओं की नैतिक आजादी तथा सामाजिक अधिकारों के खिलाफ था, तब भी वे बिना किसी समाज, वर्ग, तथा खुद के अनुयायियों के इन विचारों की परवाह करे बिन महिलाओं के हकों को दिलाने अकेले संघर्ष कर रहे थे। इतिहास में ऐसा कोई नहीं दिखता जिसने महिलाओं के अधिकार तथा स्वतंत्रता के लिये विपरीत परिस्थितियों में भी ईतना संघर्ष किया हो। आज महिला अधिकार तथा स्वतंत्रता के जो आंदोलन हो रहे हैं। उनके समाधान की रूपरेखा बाबा साहब द्वारा अपनी तमाम किताबो के लेखन तथा कानूनी  और अन्य प्रयासों द्वारा रखी जा चुकी है। और आज भी महिला सशक्तिकरण के मंच में बाबा साहब की विचारधारा या यूं कहें कि अम्बेडकरवाद की झलक देखने को मिल जाती है।

बाबा साहब द्वारा मजदूरों के अधिकारों संबंधी सुधार के प्रयास

आजादी से पहले भारत में मजदूरों का व्यापक शोषण किया जा रहा था। जो कि इतने प्रयासों के बाबजूद आज भी जारी है। बाबा साहब द्वारा अंग्रेजों शासन काल में तथा उसके बाद भी मजदूरों के कल्याण तथा अधिकारों के अनेक प्रयास किये। जो कि भारत में व्यापक स्तर पर सर्वप्रथम थे। जैसे कि मजदूरों को उनके काम का पूर्ण परिश्रमिक मूल्य देना, सरकार द्वारा प्राप्त सहायता देना, महिला- पुरुष को समान परिश्रम का समान वेतन, श्रमिक कानूनों में बाबा साहब के द्वारा कानूनी प्रावधान। तथा इसके अलावा उनके लिखे लेखों तथा किताबों में उल्लेखित विचारों की महत्ता भी बहुत है। परिवार के कल्याण व विकास के लिये योजना के निर्माण व कार्यान्वय में भारत सरकार तथा पूर्व में अंग्रेजी सरकार को विशेष सलाह देना। बाबा साहब काफी हद तक इसमें सफल हुये। लेकिन भारत में आज भी मजदूरों की समस्या के समाधान के लिये तैयार किये जा रहे कानूनों, सरकार की योजनाओं, मजदूरों के आंदोलनों के कारणों में बाबा साहब की विचारधारा जो कि अम्बेडकरवाद है, का प्रभाव देखने को मिल जाता है। जो इतने वर्षों पुरानी है।


बाबा साहब द्वारा किसानों के अधिकारों संबंधी सुधार के प्रयास

भारत की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है। पर भारत के प्राचीन काल से ही कृषक का शोषण हो रहा है। कई राजाओं के कालो, अंग्रेजी हुकूमत के समय भी इन पर अत्यधिक जुल्म किया जाता रहा है। जैसे कि जमीदारी प्रथा के माध्यम से, कई शासकों द्वारा अत्यधिक कर लगाकर, और कृषि उपज न होने या खेती न होने पर भी कर की कठोरता के साथ अदायगी, साहूकारों द्वारा जमीन हड़पकर, सरकार द्वारा जमीन को अधिग्रहीत करके, अधिकारियों द्वारा उचित सीमांकन न किया जाकर, फसलों के दाम उचित मूल्य पर तय नहीं करना आदि। बाबा साहब ने अंग्रेजों के समय से ही आंदोलनों के माध्यम से तथा अपने भाषणों के द्वारा इसका विरोध किया है। तथा किसानों के कल्याण के लिये अनेक परामर्श बिट्रिश हुकूमत से करे। तथा समाचार पत्रों के माध्यम से आलोचना भी की। तथा सुधार के उपाय भी प्रदान करे। उसके बाद आजाद भारत में भी उन्होंने सरकारी प्रावधानों में कृषि तथा कृषक कल्याण संबंधी उपाय किये। जैसे किसानों की जमीन के सही नापतौल, उनके जमीनों के कागजी अधिकार, फसल नष्ट होने पर सरकारी सहायता राशि, कृषकों की फसलों के उचित मूल्य तय करने संबंधी आदि। बाबा साहब की किताबों के अंशों के माध्यम आज भी सरकारी योजनाओं में तथा कृषि विकास की नीतियों को बनाने तथा क्रियान्वयन में मदद की जाती है।यह मदद ही अम्बेडकरवाद है।


बाबा साहब द्वारा समान नागरिक आचार संहिता लागू करवाने के प्रयास

बाबा साहब ही ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होनें समान नागरिक आचार संहिता कानून को संसद में पेश किया था। इस कानून के माध्यम से भारत में तमाम मजहबी कानूनों के ऊपर एक नागरिक आचार संहिता कानून का होना है। पर उस समय यह कानून पास न होने से ऐसा नहीं हो सका, और इसके लिये आज भी प्रयास किया जा रहा है, यह एक ऐसा कानून है जो एक बार में हमारी तमाम अलग अलग कानूनी विचारधाराओं को एक बार में खत्म कर सकता है। जैसे उत्तराधिकार के अलग अलग कानून, विवाह आयु तथा विवाह संबंधी कानून, तलाक संबंधी अलग अलग कानून, राष्ट्र के प्रति भारतवासियों के कर्तव्य, और इसके साथ ही वह समस्त कानून या कोर्ट के फैसले जो कई मजहबी कानूनों के आगे लोग मानने को तैयार नहीं है, उन्हें ऐसा करने से रोकना। हालांकि बाबा साहब इस कानून के कुछ अंशों को पास कराने में सफल रहे। पर आज भी कुछ प्रावधानों का पारित होना बाकी है। जो समान नागरिक आचार संहिता अधीन हैं। इस कानून को लागू करने के मसौदे में आज भी बाबा साहब द्वारा तैयार मसौदे का कुछ संशोधन के साथ उपयोग किया जाता है।


बाबा साहब द्वारा हिन्दू कोड बिल लाने के प्रयास

भारत में समान नागरिक आचार संहिता लागू न हो पाने के बाद बाबा द्वारा हिन्दू कोड बिल लाया गया, पर संसद में विरोध के कारण यह पारित न हो पाया। फिर बाबा साहब द्वारा बाद में इसे दोबारा लाया गया, तो इसके कुछ हिस्सों पर सहमति बनी। पर बाबा साहब द्वारा इसके मूर्तरूप में पारित न हो पाने के कारण इस्तीफा दे दिया गया। बाद में फिर इसके कुछ हिस्से पारित हुये। जो कि तब एक प्रयास था, ताकि इस कानून के लाभों को देखते हुये बाद में अन्य समुदाय भी इससे प्रेरित होकर इस कानून के वृहद रूप को पास करवाने को राजी हो। पर समय उपरांत बाबा साहब तथा इस प्रस्ताव के अन्य पक्षधर नहीं रहे तथा बाबा साहब इस प्रस्ताव को लागू करवाने को जितना उत्सुक थे, उतना कोई और नहीं था। इसका एक कारण यह भी हो सकता है, की वे ही इसके निर्माता होने के कारण इसकी महत्ता और भविष्य में भारत होने वाले फायदों से सबसे अच्छी तरह से परिचित थे। जब ये कानून बनेगा तब भी बाबा साहब का योगदान इस कानून की रूपरेखा को प्रभावित करेगा।



बाबा साहब द्वारा अथार्थवादी सोच को भारत में लाने के प्रयास

बाबा साहब ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने उस समय जब भारत में भौतिकता तथा अथार्थ को लाने का प्रयास किया, जब भारत में तमाम मजहबी अंधविश्वास, अनेकों गैर प्रामाणिक तथ्यों पर भरोसा करने वाले लोगों, वैज्ञानिक विचारों को आज की तुलना में कम मानने वाला समाज, आधुनिकता के विचारों के पक्षधर व्यक्तियों की संख्या बहुत कम थी। तथा ऐसे तथ्यों पर विश्वास करने वालों का सामाजिक वहिष्कार कर दिया जाता था। तब भी बाबा साहब ने भौतिकता, अथार्थ, वैज्ञानिक तथा आधुनिक विचारधारा को बढ़ावा दिया। आज सम्पूर्ण भारत आधुनिकता तथा अथार्थ को पर ज्यादा जोर दे रहा है। तो इसमें बाबा साहब के विचारों का सटीक तथा कल्याणकारी होना इंगित होता है।

यूं तो बाबा साहब के महान कार्यों, महान विचारों को कभी भी पूर्ण व्याख्यित नहीं किया जा सकता। इसलिये भारतीय संविधान के निर्माता, भारत के महान अर्थशास्त्री, महान राजनीतिज्ञ, आधुनिक विचारों के प्रणेता के रूप में बाबा साहब का जिक्र किया जाता है। वैसे बाबा साहब को मॉडर्न इंडिया का पितामह कहना भी उचित होगा। क्योंकि उन्होंने समाज के प्रत्येक वर्ग, महिला पुरुष, सभी समुदाय में बिन भेदभाव के समान सामाजिक सुधार के प्रयास किये तथा भारत को भौतिकता तथा अथार्थ के रास्ते पर चलकर आधुनिकता के युग में पहुंचने का रास्ता दिखाया। संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अम्बेकर की यही विकास, कल्याण तथा समान सामाजिक सिद्धांतो की वृहद विचारधारा ही अम्बेडकरवाद है। 

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