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अकेले कोविड-19 का ही ईलाज जरूरी है? या अन्य बीमारियों का ईलाज भी निरंतर जारी रखना होगा।

आजकल हर तरफ कोविड-19 का प्रभाव है। इससे कुछ भी अछूता नहीं है। यह प्रभाव अस्पतालों में सबसे ज्यादा है, साथ ही उन अन्य प्रक्रियाओं व सेवाओं पर जो स्वास्थ्य व चिकित्सा से संबंधित हैं। क्योंकि कोविड-19 एक स्वास्थ्य आधारित समस्या है। तो जाहिर सी बात है, कि स्वास्थ्य व चिकित्सा क्षेत्र पर ही इसका सर्वाधिक प्रभाव होगा। लेकिन कई अस्पतालों में कोविड-19 का प्रभाव कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहा है। जैसे कि कई छोटे बड़े शहरों के सरकारी अस्पताल में इस बीमारी के वजह से अन्य रोगों के उपचार की व्यवस्था लगभग खत्म सी ही हो गई है। कई अस्पतालों में तो ओपीडी व्यवस्था ही बंद कर दी गई है। कोविड-19 का प्रभाव इतना ज्यादा है, कि कुछ जिला चिकित्सालय तक में अन्य बीमारियों के मरीजों की भर्ती व ईलाज की प्रकिया को ही लगभग बन्द सा कर दिया गया है। इसके लिए अस्पतालों तथा स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा यह योजना बनाई गई है, कि सिर्फ अति गंभीर स्थिति में ही किसी और बीमारी के मरीज को भर्ती किया जाएगा। बाकि सभी लोग भगवान भरोसे छोड़ दिए गए हैं। इसके अलावा आलम यह है, कि कई जगहों पर वर्षो से लगातार चल रहे बच्चों के टीकाकरण, कई

आपदा में टेलीकॉम और ब्रॉडकास्टिंग सेवा मुफ्त हो, तो बात बने।

आज इस आपदा की स्थिति में उन टेलीकॉम कंपनी तथा डीटीएच कंपनी को अपनी सुविधाएं पूर्णता मुफ्त कर देनी चाहिए थी। जो भारत में कार्यरत हैं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। सोचने वाली बात है, जब यह कम्पनियां अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए महीनों-सालों तक असीमित सुविधाओं को मुफ्त देने का साहस रखती हैं, और अपनी ग्राहक श्रृंखला बढ़ाने के लिए समय समय पर तमाम सस्ते व मुफ्त सेवाओं के ऑफर देती रहती हैं। तो आज इस आपदा की घड़ी में भी इन कम्पनियों को अपनी सेवाएं मुफ्त नहीं कर देना चाहिए?  इससे भारत को और भारत की जनता को इस कोरोनाकाल व लॉकडाउन का सामना करने में काफी मदद मिलेगी। इसके लिए सरकार को भी आगे आकर प्रयास करने होंगे। अभी जब तक लॉकडाउन है, तब तक के लिए, भारत सरकार तथा ट्राई को टेलीकॉम व ब्रॉडकास्टिंग कम्पनियों से बात कर दूरसंचार व प्रसारण सेवाओं को मुफ्त कराने पर विचार करना चाहिए, क्योंकि लॉकडाउन के दौरान इन सेवाओं की महत्ता व आवश्यकता और बढ़ गई है। इसके अलावा वर्तमान हालातों में इन सुविधाओं को मुफ्त किया जाना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि कोविड-19 के संक्रमण के खतरे से पूरा भारत लॉकडाउन है। बिना काम लोग

अब मजदूरों की मदद के लिए सरकार को आदेश पारित करना चाहिए, आग्रह से काम नहीं चलेगा।

अब भारत में मजदूरों की समस्या लॉकडाउन की वजह से बढ़ती ही जा रही है,  यह भी सच है, कि अगर लॉक डाउन नहीं होता तो उनकी समस्या और बढ जाती। लेकिन लॉक डाउन को एक महीने से ज्यादा समय हो गया है। पर सरकार की तरफ से अभी तक मजदूरों के भरण पोषण के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किये गये हैं। ऐसा कोई भी सरकारी आदेश सरकार द्वारा नहीं दिया गया है, जो कि इन मजदूरों से काम लेने वालों पर, उनके अधीन कार्यरत मजदूरों की आर्थिक या स्वास्थ्य के प्रति जिम्मेदारी को दर्शाता हो। या कम से कम इन्हें अपने मजदूरों के वेतन भुगतान करने के लिये बाध्य करता हो। अभी एक महीना हो जाने के बाद भी कई मजदूर अपने पुराने वेतन (जिसका लॉक डाउन की वजह से भुगतान नहीं हो पाया था), उस मेहनत की कमाई को पाने के लिये तरस रहे हैं। पर उनके मालिक का अता पता ही नहीं हैं। तथा उन तमाम अप्रवासी मजदूरों के वर्तमान वेतन का क्या होगा, जो दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता जैसे महानगरों व अन्य बड़ी जगह पर कार्यरत थे, पर लॉक डाउन की वजह से बिना वेतन लिये अपने घर जा चुके हैं या अभी भी राज्यों की सीमाओं के कैंप में रह रहे है। या लॉकडाउन के कारण कहीं और फ

अकीकत के महीने रमजान की कोविड-19 और लॉकडाउन में जरूरत और अहमियत।

आज चांद के दीदार के साथ ही पाक रमजान और इबादत का दौर शुरु हो जायेगा। कहा जाता है, कि रमजान के महीने में इबादत करने से 70 फीसदी ज्यादा सुकून और सबाब मिलता है। रमजान का महीना इस्लामिक साल के सभी महीनों में सबसे ज्यादा पाक महीना माना जाता है। रमजान ही वो महीना है जिसमें पाक क़ुरआन शरीफ नाजिल हुआ था। जिसमें नमाज जकात के साथ तमाम वो बातें शामिल हैं, जिनमें सारी कायनात समाई हुई है। लेकिन इस रमजान में लॉकडाउन है। तो ऐसे वक्त में रमजान की अहमियत और जरूरत पहले से और ज्यादा है। क्योंकि रमजान में लोग सुकून और सबाब पाते हैं, जिसकी अभी सख्त अहमियत है। और जो सबाब और सुकून पाने का जरिया है, उसकी हर जरूरतमंद को बहुत जरूरत है। तो ऐसे वक्त में रमजान का आना अपने आप में बहुत अहम और खास है। हालिया हालातों में वजू की अहमियत कितनी ज्यादा है। इस्लाम में नमाज को फर्ज बताया गया है। नमाज़ अदायगी की अपनी मजहबी अहमियत तो है, साथ ही साथ नमाज़ में वजू की अहमियत बहुत ज्यादा है। जो कि आज कोविड 19 के दौर में समझी जा सकती है। दिन में पांच बार नमाज़ अदा की जाती है। जो कि पांच बार वजू की हिदायत देती है। इन पांच

अम्बेडकरवाद क्या है ? सिर्फ दलितों के विकास का माध्यम, या सम्पूर्ण भारत के कल्याणकारी विकासों के साथ अधिकारों की अद्वितीय विचारधारा।

डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर को दलितों का मसीहा कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए जितने प्रयास किये उतने कोई नहीं कर सका, और दलितों की जीवनशैली में सुधार व सामाजिक सुधार का कोई सबसे बड़ा कारण हैं तो वे भीमराव अम्बेडकर ही हैं। बाबा साहब के ज्ञान और कठिन परीक्षण के बाबजूद ही दलित आज नीच उच्च के बंधन से मुक्त हो पाए हैं तथा इन पर होने वाले अत्याचारों में कमी आईं है। चित्र: बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर कुछ लोग दलितों के हित के प्रयासों को ही अम्बेडकरवाद समझते है. उन्हें ऐसा है लगता है कि दलितों के जीवन सुधार के प्रयास ही अम्बेडकरवाद है। उनके लिये अम्बेडकरवाद यहीं तक सीमित है। जबकि ऐसा नहीं है, कि अम्बेडकरवाद एक बहुत विस्तृत विचारधारा है । जिसमें भारत तथा दुनिया के कानूनी सुधारों, समान जीवन के सिद्धांत, आधुनिक विकास, अथार्थता के साथ साथ भौतिकता आदि कई अन्य उपयोगी बातों का समावेश है। माना जाता है कि बाबा साहब अम्बेडकर ने सिर्फ अनुसूचित वर्ग के कल्याण के प्रयास किये, बाबा साहब के बारे में अध्ययन करने पर मालूम होता है कि भारत के उन सभी दबे कुचले, प्रताड़ित, असहाय, मजदू