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अधिक विकसित क्षेत्रों में कोरोनावायरस के संक्रमित मरीज ज्यादा मिलने का कारण क्या है?

अभी तक भारत में कोरोनावायरस के 17000 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, और आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। अब कोरोनावायरस के मामले पहले की अपेक्षा और तेजी से सामने आ रहे हैं। और विकसित क्षेत्रों में अधिक मामले तेजी से बढ़ रहे ही। जैसे अकेले मुंबई ओर दिल्ली दोनों में ही यह आंकड़ा 2-2 हजार से ज्यादा हो चुका है। जिससे देखने को यह मिला है कि जो शहर- राज्य ज्यादा संपन्न हैं। वहां वायरस का प्रभाव और प्रसार दोनों ही पिछड़े क्षेत्रों की अपेक्षा ज्यादा है। हालांकि हो सकता है कि इस आसामान प्रसार के पीछे कोई कारण न हो, या हो सकता है, है कि कई सारे कारण हों।

कोरोनावायरस के ज्यादा विकसित शहरों और राज्यों में ज्यादा प्रभाव का कारण, कोरोनावायरस लैबों की इन क्षेत्रों में ज्यादा या कम मात्रा में उपलब्धता का होना हो सकता है। या अधिक संपन्न शहरों में कोरोनावायरस टेस्टिंग लैब की अधिक संख्या होने से ज्यादा मात्रा में सैंपल की टेस्टिंग हो पाने के कारण ज्यादा सटीक जानकारी का मिलना हो। क्योंकि ज्यादा लैब होने से ज्यादा सैंपल टेस्ट किये जा सकते हैं। जिससे से अधिक से अधिक लोगों की कोरोनावायरस रिपोर्ट तैयार की जा सकती है।


उदाहरण के तौर पर अकेले महाराष्ट्र में 4000 से अधिक संक्रमित मिले हैं। दिल्ली में भी 2000 से अधिक संक्रमित का पता चल चुका है। इसके साथ ही गुजरात में 1700 से अधिक तमिलनाडु, राजस्थान और मध्यप्रदेश में 1400-1400 से अधिक कोरोनावायरस पॉज़िटिव मिले हैं।

अकेले इन 6 राज्यो में ही संक्रमण के 13000 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं, और अन्य बाकि 22 राज्य और 09 केंद्रशासित प्रदेशों के कुल संक्रमित अभी लगभग 4000 के आस पास है। जिसमें उत्तरप्रदेश, आंधप्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्य शामिल हैं।

वहीं बिहार अकेले राज्य की बात करें, तो वहां संक्रमण के कुल 93 मरीजों का पता चला है जबकि बिहार की आबादी 2011 राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के हिसाब से कुल 10 करोड़ से अधिक थी, जिसका कुल जनसंख्या में 8.6 % योगदान रहा था।सा ही साथ उपरोक्त सभी 6 राज्यों में महाराष्ट्र के अलावा किसी राज्य की जनसंख्या बिहार से ज्यादा नहीं है। फिर भी बिहार में संक्रमण का आंकड़ा 100 को भी नहीं छू पाया है यानी कि 10 करोड़ में से 100 लोग भी अधिकारिक रूप से आज 20.04.20 की स्थिति में संक्रमित नहीं है। ये पिछड़े बिहार में एक चमत्कार की तरह है। या यूं कहो कि उपलब्ध मेडीकल लैब की संख्या कम होने का प्रकोप है।

क्योंकि बिहार में अभी तक उपलब्ध कुल लैबों की संख्या सिर्फ 6 है। और वहां कोई भी प्राइवेट लैब अभी तक नहीं खुली है। जबकि अभी तक जारी आंकड़े अनुसार दिनांक 19.04.2020  की स्थिति में भारत में कुल 83 प्राइवेट लैब हैं। जिनमें से कुल 19 लैब महाराष्ट्र में, 10 लैब दिल्ली में, 10 लैब तमिलनाडू में तथा 12 लैब तेलंगाना में हैं। यानी कुल 83 में से 51 लैब सिर्फ 4 राज्यों में ही अपनी सेवा दे रही हैं। और अगर सरकारी लैब की बात करें तो दिनांक 19.04.20 के जारी आंकड़ों के अनुसार भारत में कुल 197 सरकारी टेस्टिंग लैब हैं, तथा 3 कलेक्शन साईट हैं। जिसमें से सर्वाधिक संक्रमित राज्य महाराष्ट्र में 21 सरकारी लैब, तमिलनाडू में 22 सरकारी लैब उपलब्ध हैं। यानी कि लगभग 15 प्रतिशत आबादी (2011 एन.पी.आर. के जारी जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर) को उपलब्ध कुल लैब का 20 प्रतिशत कोटा उपलब्ध है। वहीं एन.पी.आर. 2011 के अनुसार बिहार की आबादी 10 करोड़ से ज्यादा है या यूं कहें कि भारत की जनसंख्या का कुल 8.6 प्रतिशत है, जिस पर कुल 6 सरकारी लैब यानी कि 19.04.20 की स्थिति में कुल 3 प्रतिशत ही सरकारी लैब कार्यरत हैं।


इसके अलावा भारत में कुछ राज्य/केंद्रशासित प्रदेश हैं, जहां पर तो अभी तक यानि कि 19.04.20 की स्थिति में जारी आंकड़ों के अनुसार सरकारी या प्राइवेट कोई भी लैब नहीं खुली है। वहां पर सिर्फ कलेक्शन साईट ही हैं। भारत में 3 जगह सिर्फ कलेक्शन साईट ही उपलब्ध हैं।

शायद यही कारण है, एक ओर जहां बेतहाशा मरीज मिल रहे हैं वहीं दूसरी ओर इसकी अपेक्षा बहुत कम मरीजों को पता चल पा रहा है। या ऐसा कहें कि जो स्थान ज्यादा विकसित हैं, वहां ज्यादा लैब की उपलब्धता होने से, वहीं संक्रमित मरीजों की संख्या ज्यादा है। और जहां विकास कम हैं, वहां लैब भी कम हैं, तो वहां कोरोनावायरस के मरीजों की संख्या भी कम है। अर्थात जहां जितनी लैब संख्या ज्यादा और कम, वहां उतना ही कोरोनावायरस ज्यादा या कम ।

अगर प्रादेशिक आधार पर मध्यप्रदेश का उदाहरण लें, तो यह पता चलता है, मध्यप्रदेश में आज दिनांक 20.04.2020 की स्थिति में जारी आंकड़ों के अनुसार अभी 1400 से अधिक मरीज हैं, जो कोरोनावायरस से संक्रमित हैं। और इसमें से भोपाल और इंदौर में ही मध्यप्रदेश के कुल संक्रमितों में से लगभग 1/3 मामले मिले हैं।

इसका कोई विशेष कारण होना न होना यह साफ नहीं है, लेकिन हो सकता है, कि इसका कारण इन क्षेत्रों का मध्यप्रदेश के अन्य इलाकों से अधिक विकसित होना हो। या हो सकता है कि भोपाल का मध्यप्रदेश की राजधानी होने के कारण तथा इंदौर का भोपाल से कम दूरी होने तथा इंदौर प्रदेश की आर्थिक राजधानी होने के कारण यहां उपलब्ध कोरोनावायरस टेस्टिंग लैब की संख्या का अधिक होना हो।

क्योंकि अभी 19.04.20 की स्थिति में जारी आंकड़ों के अनुसार मध्यप्रदेश में कुल 12 लैब हैं। जिनमें से कुल 10 लैब सरकारी हैं, तथा 2 प्राइवेट लैब है। और ये प्राइवेट लैब इंदौर तथा भोपाल रीजन में ही उपलब्ध है। वहीं सरकारी लैबों की बात करें, तो 10 में से 5 सरकारी लैब भोपाल – इंदौर रीजन में ही खुली हैं। भोपाल से इंदौर का फांसला मध्यप्रदेश के अन्य प्रमुख नगर जैसे ग्वालियर तथा जबलपुर की अपेक्षा कम हैं, जिससे सैंपल पहुंचाने में इंदौर से भोपाल कम समय लगता है।

यही कारण हो सकता है कि लैबो की इस असामान उपलब्धता के कारण इंदौर – भोपाल जैसे विकसित क्षेत्रों में ही अधिक संक्रमित मिल रहे हैं। बाकी प्रदेश के अन्य जिलों में कम संख्या में मरीज मिल रहे हैं। क्योंकि अन्य जिलों में लैब कम हैं।

हालाकि यह पूर्णता सटीक नहीं है कि मरीजों का विकसित शहरों तथा विकसित राज्यों में अधिक मिलने के पीछे यही कारण है। पर उपलब्ध आंकड़ों की विवेचना से कुछ हद तक कोरोनावायरस टेस्टिंग लैबों का आसामान वर्गीकरण, एक कारण प्रतीत जरूर होता है। सरकार तथा प्रशासन को इस ओर ध्यान जरूर देना चाहिए। जिससे सभी जगह लैबों की उपलब्धता सुनिश्चित कर सभी क्षेत्रों में अधिक से अधिक सैंपलों की जांच कर, ज्यादा से ज्यादा लोगों की रिपोर्ट्स तैयार की जा सके।  ताकि कोरोनावायरस का किसी व्यक्ति में निम्न से निम्न अंश का ईलाज जल्दी से जल्दी हो। जो कि भारत को पूर्ण कोरोनामुक्त बनाने के लिये अति आवश्यक है।

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