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अब मजदूरों की मदद के लिए सरकार को आदेश पारित करना चाहिए, आग्रह से काम नहीं चलेगा।

अब भारत में मजदूरों की समस्या लॉकडाउन की वजह से बढ़ती ही जा रही है,  यह भी सच है, कि अगर लॉक डाउन नहीं होता तो उनकी समस्या और बढ जाती। लेकिन लॉक डाउन को एक महीने से ज्यादा समय हो गया है। पर सरकार की तरफ से अभी तक मजदूरों के भरण पोषण के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किये गये हैं। ऐसा कोई भी सरकारी आदेश सरकार द्वारा नहीं दिया गया है, जो कि इन मजदूरों से काम लेने वालों पर, उनके अधीन कार्यरत मजदूरों की आर्थिक या स्वास्थ्य के प्रति जिम्मेदारी को दर्शाता हो। या कम से कम इन्हें अपने मजदूरों के वेतन भुगतान करने के लिये बाध्य करता हो।

अभी एक महीना हो जाने के बाद भी कई मजदूर अपने पुराने वेतन (जिसका लॉक डाउन की वजह से भुगतान नहीं हो पाया था), उस मेहनत की कमाई को पाने के लिये तरस रहे हैं। पर उनके मालिक का अता पता ही नहीं हैं। तथा उन तमाम अप्रवासी मजदूरों के वर्तमान वेतन का क्या होगा, जो दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता जैसे महानगरों व अन्य बड़ी जगह पर कार्यरत थे, पर लॉक डाउन की वजह से बिना वेतन लिये अपने घर जा चुके हैं या अभी भी राज्यों की सीमाओं के कैंप में रह रहे है। या लॉकडाउन के कारण कहीं और फंसे हैं। सरकार को इन मजदूरों के मालिकों को इनके वेतन का भुगतान करने का आदेश देना चाहिए। और अगर हो सके तो इनके परिवार तक पैसे पहुंचाने की व्यवस्था भी बनानी चाहिए। क्योंकि मजदूर परिवार से दूर अन्य दूसरे शहरों में काम करने आते हैं। तो अभी लॉक डाउन के माहौल में इनके परिवार को इनसे ज्यादा पैसों की जरूरत है। क्योंकि कुछ लोग परिवार के साथ और कुछ अकेले ही इन महानगरों में मजदूरी कर रहे होते हैं।

इनमें से कुछ मजदूरों का जीवन जब रोज कमाने और रोज उसी कमाई से घर का चूल्हा जलाने वाली परेशानी से घिरा है, तो इतने लंबे समय तक इनका तथा इनके परिवार का क्या हुआ होगा, इस पर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है। चलो जैसे तैसे एक महीना बीत भी गया, पर आगे क्या होगा इसको शायद कोई सोच ही नहीं पा रहा है। क्योंकि यह कोई मनोरंजन का मुद्दा नहीं है, और अभी देश में राजनीति चमकाने के लिये अनुकूल माहौल नहीं है। इसलिए शायद इस मुद्दे पर लोग ध्यान नहीं दे रहे है। साथ ही मीडिया के पास कोविड-19 से संबंधित और कई टाईमपास तथा बेमतलब के डिबेट प्रोग्राम के प्रायोजन है। तो वे इस मुद्दे को (जो जनता को मनोरंजन की दृष्टि से पसंद नहीं आयेगा), को दिखाकर लॉक डाउन के माहौल में अपनी टी.आर.पी. गिराना नहीं चाहते हैं। 

जब मजदूरों के काम बन्द हैं, और इनके फैक्ट्री मालिकों, ठेकेदारों, कंपनी संचालकों द्वारा सोशल डिस्टेंस का पालन कर, घर पर एक सभ्य नागरिक की भांति टी. व्ही. देखा जा रहा है। और लंबे समय बाद मिले आराम के आनंद उठाया जा रहा है। अपने परिवार के साथ आनंदपूर्वक वक्त बिताया जा रहा है। सोशल मीडिया पर खूब टिप्पणियां की जा रहीं हैं। तब भी ये मजदूर बाहर रोड पर रह रहे हैं, भूख प्यास से लड़ रहे हैं। कोई अपनी परिवार के साथ है, तो कोई अकेला है। इन लोगो पर न मोबाइल चार्जिंग व्यवस्था है। हाई- वे पर रहने के कारण न ही एकल कमरों जैसी सुविधा, और न ही सुरक्षा के कोई इंतजाम हैं। तो ऐसे में मनोरंजन के लिए हमारी तरह सोशल मीडिया न होने के कारण तथा अपनी तथा अपने छोटे बच्चों- परिवार की सुरक्षा के लिए फिलहाल हाई- वे, जंगलों के आसपास सूनसान इलाकों में गुजर बसर करने के कारण ये लोग सामूहिक रूप से रह रहे हैं। तो इस कारण कई दफा तो इन्हे सोशल डिस्टेंस के पालन न कर पाने के कारण समाज का दुश्मन भी बता दिया जाता है। इस काम में अख़बार और मीडिया भी शामिल है। पर कोई कभी ये नहीं कहता कि अगर वही लोग जो इनकी मेहनत, की वजह से पैसों में खेल रहे हैं। लॉक डाउन का आनन्द उठा रहे हैं। वही लोग इनके ठहरने, खाने और ईलाज का इंतजाम करें। अपने बड़े बड़े होटलों, फैक्ट्री को इनके रहने के लिए खोल दे। तो इस समस्या का समाधान हो जाएगा। आखिर मजदूर वही लोग हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन संस्थानों को चला रहे थे। तो इतना तो इनका हक बनता है। पर इस पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है।

कुछ राज्य सरकारों नें मनरेगा के माध्यम से पैसे मजदूरों के खाते में डालने की घोषणा की है। पर जैसा की मालूम है मनरेगा में सिर्फ भवन निर्माण में कार्यरत मजदूरों को शामिल किया जाता है। तो उन तमाम मजदूरों का क्या होगा। जो किसी और काम से जुड़े हुए हैं। पूरा भारत मनरेगा के अधीन आता है। ऐसा तो नहीं है। तो सरकार को मनरेगा के अलावा और क्षेत्रों में कार्यरत मजदूरों की आर्थिक मदद के लिये योजना तैयार करनी चाहिए। तथा सभी मजदूरों को मदद देनी चाहिए।।

अभी तक सरकार द्वारा ऐसा कोई भी सरकारी आदेश या ऑर्डिनेंस पास नहीं किया गया है। जो तमाम कंपनी के मालिकों, ठेकेदारों, दुकानों के मालिकों, फैक्ट्री संचालकों पर लागू होता हो, तथा उन्हें अपने मजदूरों के वेतन का भुगतान करने की अनिवार्यता में बांधता हो। सरकार द्वारा आग्रह किया गया है कि सभी व्यापारी, दुकान मालिक, फैक्ट्री स्वामी तथा मजदूरों से काम लेने वाले व्यक्ति अपने अधीन कार्यरत मजदूरों का वेतन न काटें । लेकिन बिना सरकारी आदेश ये सभी लोग ऐसा करें यह संभव नहीं है। इसके लिये सरकारी प्रावधान की जरूरत पड़ेगी। जो कि अभी लॉक डाउन के एक महीने होने बाद तक अस्तित्व में नहीं आया है।

हालाकि यह सही है कि बड़े बड़े व्यापारी, कंपनी, ठेकेदारों, फैक्ट्री, दुकानों सभी का काम बंद है, तो इन्हें बिना काम के पैसे देने में कठिनाई हो सकती है। पर कुछ लोग हैं जो इस प्रकार की क्षमता रखते हैं कि मजदूरों का वेतन चाहें तो 3 महीने तक बिना काम के दे सकते हैं। उन्हें मानवता और अपनी जिम्मेदारी के नाते अपने अधीनस्थ मजदूरों को वेतन देना चाहिए। अगर न भी दे तो उनका जो रुका हुआ वेतन है उसका तुरंत भुगतान कर देना चाहिए। आखिर आपको लॉक डाउन हटने बाद भी तो काम कराना है, अगर वेतन न देंगे तो आपके सामने श्रमिको की समस्या खड़ी हो सकती है।

हो सकता है कि लॉक डाउन खुलने के बाद ये लोग उन मजदूरों को काम पर न रखें जिनको पैसे देना है। ताकि इन्हें उनके पुराने वेतन का भुगतान न करना पढ़े। या हो सकता है कि कुछ व्यापारी तथा फैक्ट्री संचालक अपने उद्योगों को तत्काल शुरू न करें या कुछ मजदूर खुद ही उन साईटों, उन शहरों में लॉक डाउन दोबारा लगने या सुरक्षा की दृष्टि से दोबारा फिलहाल जायें ही न। तो ऐसे में मजदूरों के सामने अपना पुराना बकाया वेतन न मिल पाने का संकट पैदा हो जाएगा। तो ऐसे में सरकार को इनका पैसा दिलाने के लिये, अभी से प्रयास शुरू कर देने चहिए। तथा सरकारी आदेश पारित करना चाहिए।


सरकार को ऑर्डिनेंस पास कर या जिलास्तर पर आदेश जारी करवाकर, उन सभी व्यक्तियों तथा संस्थानों को (जिनके अधीन मजदूर कार्यरत हैं, तथा जिनपर मजदूरों का वेतन भुगतान बाकी है) बाध्य किया जा सकता है। कि वे अपने अधीनस्थ कामगारों जैसे दुकान पर कार्यरत व्यक्ति, फैक्ट्री के कारीगरों, कंपनी – एजेंसी में कार्यरत कर्मचारी, ठेकों में लगे लोगों तथा अन्य तमाम क्षेत्रों के कामगारों के वेतन का भुगतान तत्काल करें। इसके लिए ऑनलाइन भुगतान प्रकिया को भी अपनाया जा सकता है। साथ ही अगर संभव हो तो अपने अधीनस्थ मजदूरों के परिवार के स्वास्थ्य तथा आवास की व्यवस्था करें। इसके लिए अभी खाली पड़ी फैक्ट्री, ऑफिस, तथा अन्य कार्यस्थलों को उपयोगी बनाया जा सकता है। कंपनी – फैक्ट्री की बसों, वैन, अन्य मालवाहक गाड़ियों को स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है। क्योंकि लॉक डाउन की वजह से अभी कार्यपरिसर के साथ साथ सभी वाहन अनुपयोगी हैं। इससे मजदूर की परेशानी को कम किया जा सकता है, साथ ही साथ उनके अभी अपने गांव शहर जाने की मजबूरी को कम किया जा सकता है। इससे सोशल डिस्टेंस भी बना रहेगा। और इनकी जान तथा और लोगों की जान को जोखिम कम होगा।

सरकार को आदेश पारित करना चाहिए साथ ही मजदूरों और कर्मचारियों की सहायता के लिए राष्ट्रीय तथा राज्य स्तरीय हेल्प लाईन जारी करना चाहिए। जिससे वे अपनी वर्तमान लोकेशन, भोजन की आवश्यकता, के साथ ही अपने कार्य मालिकों के खिलाफ पैसे न देने, पैसे कम देने संबंधी शिकायते तथा अन्य शिकायत, आवश्यकताओं, सुझावों को सरकार तक पहुंचा सकें।



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