सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सरकार द्वारा प्रदत्त आर्थिक सहायता राहतकारी पर पूर्ण रूप से पर्याप्त नहीं हैं।

आज भी भारत में कहते हैं कि जिसका कोई नहीं उसका भगवान होता है, और आज कोरोनावायरस रूपी महामारी के समय लॉकडाउन स्थिति में सरकार को इस कहावत को सार्थक करना होगा। सरकार को उन सभी लोगों की मदद करनी होगी जिनका कोई नहीं। जो लोग असंगठित क्षेत्र के मजदूर हैं। जिनका रोजीरोटी कमाने का जरिया अभी बंद है। क्योंकि ये लोग अधिकतर मीलों, निर्माण कार्य, मरम्मत आधारित कार्य, विभिन्न टेंडरों में, तथा उधमों में कार्यरत होते हैं। साथ ही साथ हमारी कई सामान्य आवश्यकताओं से लेकर अर्थव्यवस्था के मूलभूत स्तंभों का भार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इसी कामगार वर्ग पर टिका हुआ है। जैसे कच्चा माल तैयार करना, अन्य संयंत्रों में मूल समान तैयार करना, निर्माण कार्य, पैकेजिंग कार्य, माल तथा वाहन परिवहन सेवा, सामाग्री बिक्री के साथ आम सेवाओं माल की सामान्य बाजार तथा समाज तक उपलब्धता आदि। वर्तमान में यह सभी काम बंद हैं, तो ऐसे में इनके सामने कोरोनावायरस के साथ साथ भूख भी एक व्यापक समस्या बनकर खड़ी हो गई है। और इनकी आर्थिक क्षमताओं की परीक्षा तो वह अवसरवादी और मुनाफाखोर लोग और अच्छी तरह से ले रहे हैं, जो सरकारी मनाही के बाबजूद उच्चदरों पर खानपान की आवश्यक वस्तुओं की बिक्री कर रहे है। वहीं कुछ आर्थिक संपन्न लोग तथा व्यापारी आवश्यकता से अधिक खादय सामाग्री का भण्डारण कर रहे हैं। तो ऐसे में इनके लिए दैनिक उपभोग की वस्तुओं को जुटा पाना भी मुश्किल हो गया है, यह वही वर्ग है जिसके पास कोई विशेष बचत योजनाओं में जमा धन या कोई और जमापूंजी नहीं होती है, और इन्हें फिलहाल जब तक लॉकडाउन है तब तक कोई वेतन मिलने की कोई संभावना भी नहीं है। क्योंकि यह वर्ग दैनिक वेतन भुगतान आधारित प्रणाली पर आश्रित है, तो जब तक काम नहीं तब तक पैसा नहीं। और कुछ अन्य लोग जो मासिक आधार या साप्ताहिक आधार पर वेतन लेते हैं, हो सकता है उनके मालिक तथा ठेकेदार उन्हें उनके श्रम का लॉक डाउन के पहले का बकाया पैसा न दे और ये ऐसे में उनके खिलाफ कोई विशेष कार्यवाही भी नहीं कर सकते क्योंकि यह श्रमिक किसी लिखित अनुबंध या अन्य कोई आधिकारिक कागजी प्रकिया के अन्तर्गत कार्यरत नहीं होते हैं। तो जब हमें इस महामारी के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़नी है, ऐसी परिस्थिति में सरकार को इनका संकट मोचक बनकर इनकी मदद करनी होगी।

हालाकि यह भी उल्लेखनीय है, कि हमारी केंद्र सरकार, राज्य सरकारों द्वारा राहत पैकेज, मुफ्त राशन योजनाओं, अन्य सहायता योजनाओं, वित्तीय घोषणाओं के साथ साथ कई अन्य प्रकार से मदद देने का ऐलान किया है। परन्तु घोषणाओं को सुचारू से लागू करवाने की जिम्मेदारी सरकार के साथ साथ प्रशासन को लेनी होगी। तथा राहत योजनाओं में अपूर्णता भी अंतिम स्तर तक लाभ की पहुंच को प्रभावित कर सकती है। कुछ योजनाओं के द्वारा काफी मदद पहुंचाई जा रही है। लेकिन अगर उनमें कुछ और प्रावधान जोड़ दिये जायें तो अधिक से अधिक लाभ समाज के निम्न स्तर तक पहुंचाया जा सकता है।

जैसे कि केंद्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों द्वारा मुफ्त राशन देने की घोषणा की है। लेकिन यह राशन की सीमा सरकारी नजर में सिर्फ गेहूं और चावल तक सीमित है। जो कि सरकार द्वारा काफी लंबे समय से दिया जा रहा है। पर इस आपदा की घड़ी में सरकार को इसमें विस्तार कर खादय तेल, दालें, मिर्च-मसाले, नमक, बेसन के साथ साथ अन्य उपयोगी सामग्री प्रदान करना चाहिए, और साथ ही सार्वजनिक वितरण केन्द्र की मॉनिटरिंग की जाना भी आवश्यक है। क्योंकि हो सकता है कि राशन वितरक कुछ हितग्राही को राशन प्रदाय करने में गड़बड़ी कर सकते हैं जिससे राशन हर पात्र व्यक्ति तक पहुंचने में दिक्कत हो सकती है। जैसे कि उदाहरण के लिये म.प्र. शासन द्वारा सभी को राशन कार्ड होने या न होने की परिस्थिति में भी राशन देने तथा अन्य प्रदेशों के निवासी जो वर्तमान में म.प्र. में निवासरत हैं, उन्हें भी राशन सामाग्री देने का आदेश दिया है। पर बिना मॉनिटरी सिस्टम के राशन प्रदाता केंद्र उन्हें प्रमाण पत्र मांग कर, म.प्र. का निवासी ना होना बताकर तथा अन्य कई तरीको से राशन सामग्री से वंचित कर सरकारी योजना पर पलीता लगा सकते है। ऐसे में इनकी मॉनिटरिंग करना बहुत जरूरी है।


वित्त मंत्रालय द्वारा राहत पैकेज-१ की घोषणा कर तमाम वित्तीय राहत प्रदान की हैं, जिसमें उज्जवला योजना के तहत पंजीकृत महिलाओं को सिलेंडर के पैसे देकर अथार्थ मुफ्त सिलेंडर देकर बहुत सराहनीय काम किया है। जिससे कई गरीब परिवारों में खाना पकने की सुगंध ही भारत की बहुत आबादी के चेहरे पर मुस्कान ले आयेगी। लेकिन इस योजना के बाहर के वह परिवार जो घुमक्कड़ मजदूर हैं, दूसरे शहरों में फंसे हुए हैं, तथा तमाम वह परिवार जो उज्जवला योजना में किसी कारणवश पंजीकृत नहीं हो सके हैं, लेकिन आर्थिक रूप से काफी कमजोर हैं, उनका क्या होगा। व तमाम वह लोग जो आज भी बाहर रहने या कम पैसे होने तथा विद्यार्थी होने के कारण छोटे शहरों कस्बों में किलो के हिसाब से गैस भरवाते हुये देखने को मिल जाते हैं, उनका क्या होगा। इस बात पर सरकार ने गौर नहीं किया है। इसके लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकारों व एल.पी.जी. कंपनी घरेलू सिलेंडर पर से टैक्स हटाकर तथा जब तक लॉकडॉउन है, तब तक सरकार द्वारा एलपीजी गैस सिलेंडर बुकिंग प्रकिया में जो सब्सिडी बैंक खाते में जाती है उस राशि को सिलेंडर मूल्य में न जोड़कर गरीब तबके के लिए सिलेंडर सस्ता किया जा सकता है। और उज्जवला योजना के बाहर का गरीब-मजदूर वर्ग भी रियायती दर पर गैस सिलेंडर रिफिल प्राप्त कर सकेगा। इससे सोशल डिस्टेंस भी बना रहेगा क्योंकि गरीब तबके के लिए सब्सिडी के पैसे इस समय अमृत के सामान हैं, ऐसे में लोग बैंक में निकालने जाएंगे तो सोशल डिस्टेंस सिस्टम भी गड़बड़ा सकता है। तो अगर सब्सिडी के पैसे पहले ही सिलेंडर के मूल्य में न जोड़े जाएं तो काफी फायदा हो सकता है।


रिजर्व बैंक द्वारा राहत पैकेज-२ में बैंक तथा फाइनेंस कम्पनियों के होम, ऑटो लोन आदि पर तीन महीने की किश्त के लिए छूट दी गई है, लेकिन इसमें मोबाइल फाइनेंस कंपनी लोन, इलेक्ट्रिकल सामान के लोन, लघु स्तरीय-छोटे लोन पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया है, जबकि गरीब मजदूर तबका सबसे ज्यादा यही लोन लेता है, क्योंकि यही लोन इनकी सिविल के दायरे में आ पाते हैं। जैसा कि सरकार द्वारा इस प्रकार के लोन के लिऐ कोई स्पष्ट प्रावधान राहत पैकेज में नहीं किए गए हैं। तो ऐसे में इन्हें तो अपनी किश्त चुकानी ही पड़ेगी, और अगर ये किश्त न भरें तो इनके सिविल स्कोर कम होने की भी संभावना है, जिससे इन्हें भविष्य में लोन मिलना भी मुश्किल हो जाएगा। अगर लॉक डाउन के कारण कुछ ऋण दाता ई.एम.आईं. की मांग न भी करें, तो भी लोन कंपनी किश्त विलंब भुगतान शुल्क तो जरूर लागू करेगी ही। इनके लिए वर्तमान हालात में विलंब अधिभार चुकाना भी किसी पहाड़ खोदने से कम नहीं होगा।


इसके साथ ही प्रशासन को लॉक डाउन के दौरान कोरोनावायरस के अलावा अन्य रोगों की ईलाज की भी व्यवस्था सोशल डिस्टेंसिग का पालन करते हुए करनी होगी। इसमें आम जन की सहभागिता भी बहुत जरूरी है, की वह इलाज के दौरान सोशल डिस्टेंस का पालन करें। सरकार तथा प्रशासन को चिकित्सा क्षेत्र की सुविधाएं जैसे एंबुलेंस, चिकित्सकीय परामर्श, दवाईयां, जांच आदि को लॉकडाउन के समय और अधिक सुचारू रूप से उपलब्ध कराना होगा, क्योंकि आम दिनों में यह सब काम मरीज के परिजन निजी वाहनों तथा अन्य निजी सुविधाओं के माध्यम से भी कर लेते थे। लेकिन वर्तमान में कई निजी सुविधा जैसे वाहन, निजी दवा स्टोर, निजी चिकित्सक परामर्श सुविधा उपलब्ध नहीं हैं, और अगर कुछ उपलब्ध भी हैं, तो उतनी तीव्र प्रतिक्रियात्मक नहीं है, जितना कि सामान्य दिनों में हुआ करती थी। साथ ही साथ सामान्य दिनों की अपेक्षा महंगी भी हो सकती हैं। साथ ही ब्लड बैंक तथा एंटी ट्यूबर क्लोसिस दवाओं के केन्द्र अपने कार्य सामान्य दिनों की तरह ही करते रहें, यह अति आवश्यक है। इसके अलावा शिविरों में रह रहे मजदूरों, अन्य राज्यो में फंसे लोगों, तथा हर व्यक्ति के ईलाज के लिए सरकार द्वारा विशेष संवेदनशील रोग जैसे हृदय रोग, न्यूरोलॉजी रोग, आदि के ईलाज तथा दवाई की उपलब्धता सुनिश्चित करना भी काफी जरूरी है। मजदूरों के शिविरों में भी ऐसे मरीजों की पहचान कर उन्हें दवा उपलब्ध कराई जानी चाहिए, जो विशेष डोज जैसे डॉट्स, हाईपरटेंशन, रक्तचाप, मधुमेह आदि की दवाई नियमित रूप से लेते है। विशेषकर गर्भवती महिलाओं की प्रसव पीड़ा के उपचार, प्रसव व्यवस्था, अस्पताल तक के लिऐ एम्बुलेंस, डॉक्टर-नर्सिंंग स्टाफ की समुचित व्ययवस्था तथा तीव्र उपलब्धता भी बहुत आवश्यक है। छोटे बच्चो व नवजात शिशुओं के नियमित चेकअप तथा टीकाकरण होना भी जरूरी है। साथ ही उनके सोशल डिस्टेंस में रहने की व्यवस्था की देखरेख भी बहुत जरूरी है। ताकि उनकी नई जिंदगी का भविष्य सुनहरा हो। इसके लिए सरकार तथा प्रशासन के साथ सामान्य नागरिक को सहयोग देना होगा। पर सरकार की भूमिका योजना बनाने तथा उन्हें लागू करवाने की दृष्टि से सबसे अहम है।


सरकार द्वारा अभी तक दी गई सहायता मददकारी तो हैं, पर पर्याप्त कह देना जल्दबाजी होगी, जब तक ये मदद समाज के निम्न वर्ग के अंतिम स्तर तक नहीं पहुंचती, तब तक इन्हें पूर्ण कार्यकारी तथा पर्याप्त नहीं माना जा सकता। इसके साथ इनमें और आर्थिक प्रावधान करने होंगे। साथ ही साथ स्थानीय प्रशासन द्वारा इन योजनाओं को सुचारू रूप से लागू करवाया जाना भी बहुत जरूरी है। इसमें आम जनता व बुद्धिजीवियों को भी अपनी मदद देनी चाहिए। यह ऎसा दौर है, जिसमें भौतिक दूरी बनाने के साथ भावनात्मक रूप से गरीब मजदूर वर्ग के पास होना बहुत जरूरी है, ताकि आम निम्न मजदूर वर्ग का इस समाज पर भरोसा बना रहे, और विश्वास न टूटे, साथ ही वह खुद भी न टूटे और इस महामारी के दौर में कंधा से कंधा मिलाकर पूरी दुनिया के साथ डटे रहें। और इस कोरोनावायरस रूपी महामारी से लड़ते रहें। और जीत के जश्न में पूरी दुनिया के साथ हों। और भारत तथा दुनिया को फिर से नये मुकाम तक पहुंचाने में अपना अमूल्य योगदान दे सके। जैसा कि हर मजदूर युग युगांतर से देता हुआ आ रहा है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आत्मनिर्भर राहत पैकेज मजदूरों को तत्कालीन राहत देने में असमर्थ रहा।

आत्मनिर्भर पैकेज की घोषणा होते ही अप्रवासी मजदूरों की वर्तमान उम्मीदों को एक और झटका लगा। क्योंकि आत्मनिर्भर पैकेज में जो घोषणायें की गई हैं। वह सभी मजदूरों को तुरंत राहत देने वाली नजर नहीं आ रहीं है। सरकार द्वारा की गई घोषणाओं में भविष्य पर ज्यादा जोर दिया गया है। जबकि सरकार द्वारा  अभी आम गरीब जनता और मजदूरों को सबसे पहले उनके घर पहुंचाना और उनको भरण पोषण के लिए आवश्यक सामान उपलब्ध कराया जाना सबसे ज्यादा जरूरी था। साथ ही सरकार को मजदूरों को अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए नकद पैसे देने की घोषणा भी पैकेज में करनी चाहिए थी। क्योंकि अभी तक मजदूरों को जो कुछ भी आर्थिक मदद मिली है वह मनरेगा योजना में पंजीकृत मजदूरों तक ही सीमित है। लेकिन सरकार शायद उन तमाम मजदूरों को भूल गई है, जो मनरेगा में पंजीकृत नहीं है। तथा तमाम ठेला चालक, गुमटी वाले, दुकानों पर काम करने वाले मजदूर, फैक्ट्री में कार्यरत लेवर आदि की मदद के लिए कोई भी सरकार अभी तक प्रयास करती हुई दिखाई नहीं दी है। इन सभी वर्ग के मजदूरों को, जो आशा प्रधानमंत्री के संबोधन में 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज के जिक्र से बंधी थी,  वह ...

अप्रैल.29.2020 को क्या वाकई कोई ग्रह पृथ्वी से टकराएगा? इस बारे में क्या हैं वैज्ञानिक राय?

अभी काफी दिनो से सोशल मीडिया पर एक पोस्ट खूब आग की तरह धड़ल्ले से फैल रहीं है। और हम में से ही कई लोग इस खबर को बिना कुछ सोचे समझे फॉरवर्ड कर आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। वर्तमान समय में ऑनलाइन से लेकर ऑफलाइन लाईफ में यह पोस्ट सेकंड नंबर ट्रेंडिंग चर्चा का विषय बन चुका है। यह खबर या पोस्ट इये है, कि कोई ग्रह या पिंड धरती की ओर तेजी से आ रहा है। और 29 अप्रैल 2020 को यह ग्रह या पिंड जो भी है, पृथ्वी से टकरा जायेगा। और सब कुछ तबाह हो जाएगा। इस बात को लेकर लोग खासे परेशान हैं, और परेशान होना भी लाजमी है क्योंकि जैसा कि वायरल पोस्ट में बताया गया है, अगर वैसा होता है, तो कोई व्यक्ति विशेष की जान को ही नहीं, बल्कि पूरी पृथ्वी के अस्तित्व को ही खतरा पैदा हो सकता है। लोग रोज-ब-रोज इस बात को लेकर परेशान हैं, कि यह और पास आ गया है, अब और पास। और सोशल मीडिया पर रोज इसके आने के कम होते हुए दिन गिने जा रहे हैं। जैसे जैसे इसके पृथ्वी के पास आने का समय तारीख नजदीक आ रहे हैं, वैसे ही लोगों में अलग अलग बातों का पनपना शुरू हो गया है। साथ ही डर व बेचैनी का माहौल बढ़ रहा है। यह माहौल उन लोगों क...

अम्बेडकरवाद क्या है ? सिर्फ दलितों के विकास का माध्यम, या सम्पूर्ण भारत के कल्याणकारी विकासों के साथ अधिकारों की अद्वितीय विचारधारा।

डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर को दलितों का मसीहा कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए जितने प्रयास किये उतने कोई नहीं कर सका, और दलितों की जीवनशैली में सुधार व सामाजिक सुधार का कोई सबसे बड़ा कारण हैं तो वे भीमराव अम्बेडकर ही हैं। बाबा साहब के ज्ञान और कठिन परीक्षण के बाबजूद ही दलित आज नीच उच्च के बंधन से मुक्त हो पाए हैं तथा इन पर होने वाले अत्याचारों में कमी आईं है। चित्र: बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर कुछ लोग दलितों के हित के प्रयासों को ही अम्बेडकरवाद समझते है. उन्हें ऐसा है लगता है कि दलितों के जीवन सुधार के प्रयास ही अम्बेडकरवाद है। उनके लिये अम्बेडकरवाद यहीं तक सीमित है। जबकि ऐसा नहीं है, कि अम्बेडकरवाद एक बहुत विस्तृत विचारधारा है । जिसमें भारत तथा दुनिया के कानूनी सुधारों, समान जीवन के सिद्धांत, आधुनिक विकास, अथार्थता के साथ साथ भौतिकता आदि कई अन्य उपयोगी बातों का समावेश है। माना जाता है कि बाबा साहब अम्बेडकर ने सिर्फ अनुसूचित वर्ग के कल्याण के प्रयास किये, बाबा साहब के बारे में अध्ययन करने पर मालूम होता है कि भारत के उन सभी दबे कुचले, प्रताड़ित, असहाय, ...