सरकार ने लॉकडाउन को आगे बड़ा दिया है, पर सरकार को इसके साथ ही कोरोना जांच की क्षमता को भी बढ़ाना होगा। क्योंकि सिर्फ लॉक डाउन बढ़ाने से काम नहीं बनेगा। सरकार को जांच की और लैब खोलनी होगी जिससे की अधिक से अधिक जांच हो सके तथा ज्यादा से ज्यादा संक्रमित मरीजों का पता चल सके। साथ ही साथ उन्हें आइसोलेट कर और लोगो तक महामारी को फैलने से रोका जा सके, अन्यथा एकदम आंकड़े सामने आने पर समस्या और विकराल रूप धारण कर सकती है।
लॉक डाउन से भारत को फायदा तो हुआ है। लेकिन कम जांच की वजह से भारत में एकदम मरीजों की संख्या में इजाफा होने का अनुमान लगाया जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भारत में कोरोना की जांचों का कम होना चिंता का विषय बताया है, तथा एक अन्य अनुसंधान संस्था Cov-Ind 19 ने भी भारत में जांच संबंधी विषय में लगभग विश्व स्वास्थ्य संस्थान जैसी ही राय दी है।
भारत में लगभग 135 करोड़ जनसंख्या है, और आज दिनांक 17. अप्रैल. 2020 की स्थिति में भारत में कुल सरकारी लैबों की संख्या 176 और कुल प्राइवेट लैब 80 हैं। साथ ही 3 सरकारी कलेक्शन साईट हैं। यानी की 1 करोड़ आबादी पर कुल 2 लैब भी उपलब्ध नहीं है, और अगर प्राइवेट लैब को हटाकर सिर्फ सरकारी लैबों की बात करे तो आज दिनांक 17. अप्रैल. 2020 की स्थिति में 75 लाख से अधिक लोगों पर सिर्फ 1 सरकारी लैब है। तो ऐसे में कम लोगों की ही जांच हो पा रही है। क्योंकि प्राइवेट लैब की फीस काफी अधिक है। और उनका अभी सरकार के साथ आधिकारिक कोई भी टाय अप नहीं हुआ है।
जैसा कि भारत में कोरोनावायरस सेकंड स्टेज में है, पर कुछ स्थानों पर कम्यूनिटी ट्रांसमिशन जैसे हालात भी दिखे है। पर इसका पुख्ता प्रमाण होने का दावा सरकार द्वारा खारिज कर दिया गया है। लेकिन भारत में लैब की कम उपलब्धता के कारण कम सैंपल की जांच हो रही है। यह बात विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कही गई है। तो हो सकता है, कि अगर भारत में लैब की संख्या बढ़े तथा अधिक से अधिक लोगों की जांच हो तो संक्रमित व्यक्ति की संख्या में वृद्धि हो सकती है। जिससे उनका सही समय पर ईलाज व आइसोलेशन किया जा सकता है। तथा महामारी को तीसरे स्टेज में जाने से रोका जा सकता है।
लैब कम होने से प्रत्येक लैब पर अन्य कई समीपवर्ती शहरों के सैंपल टैस्टिंग के लिये भेजे जाते है। ऐसे में उन्हें भेजने में काफी समय लगता है। कई जगहों पर तो यह फासला 100 से अधिक किलोमीटर का है। इससे समय लगने के कारण संदिग्ध का पता लगने में अधिक समय लगता है, जिससे ईलाज की प्रकिया भी प्रभावित होती है। अगर लैब की संख्या बढ़ेगी तो गांवो के क्षेत्रों को भी कवर किया जा सकेगा। कुछ छोटे शहरों में लैब स्थापित होने से भारत की काफी आबादी की टैस्टिंग ही सकेगी।
साथ ही साथ वह लोग जो ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं या अभी बड़े शहरों से अपने गांव में आकर रह रहे हैं। उनकी जांच होना भी काफी जरूरी है क्योंकि कम टैस्टिंग की वजह से इन क्षेत्रों में कोरोनावायरस का खतरा बढ़ सकता है। तथा स्थिति सामान्य होने पर आवागमन व व्यापार की वजह से वायरस दोबारा फैल सकता हैं। इसकी रोकथाम का सिर्फ एक ही उपाय है अधिक से अधिक जांचे होना। अगर ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोनावायरस ज्यादा फैल गया तो शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ज्यादा समस्या होगी। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की काफी कमी है और भारत की सबसे बड़ी आबादी इन्हीं क्षेत्रों में निवासरत है। साथ ही साथ हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि भारत एक कृषि प्रधान देश है।
कम टैस्टिंग क्षमता के कारण वह सभी व्यक्ति जिनमें खांसी जुखाम के साथ अन्य कई कोरोनावायरस के लक्षण हैं उनका तेजी के साथ चेकअप नहीं हो पा रहा है। क्योंकि हमारी प्राथमिकता सेकंड स्टेज की वजह से अभी तक विदेश दौरे के हिस्ट्री वाले व्यक्ति या कोरोनावायरस संक्रमित के साथ संपर्क आने वाले लोगों को ही दी जा रही है। इनके बाद ही अन्य लक्षण को वाले लोगों को वरीयता दी जा रही है। अधिक जांच होने पर इनकी भी जांच अधिक से अधिक की जा सकेगी। और कोरोनावायरस को तीसरे स्टेज जाने से अभी रोका जा सकेगा।
जैसा कि कहा जा रहा है, लॉकडाउन कोरोनावायरस से बचने का एकमात्र तरीका है। यह काफी हद तक सही है, पर हमें सोशल डिस्टेंस के साथ कोरोनावायरस की जांच को ज्यादा से ज्यादा करना होगा। तभी भविष्य के खतरे को और अच्छी तरह से अभी से टाला जा सकता है।
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