सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

आखिरकार देर आये, पर दुरुस्त आये। लेकिन कितने दुरुस्त देखना होगा?

आज मजदूर दिवस है। लेकिन मजदूर की आज क्या दशा हो रही है वो तो सब देख ही रहे हैं। वैसे भी हर साल मजदूर दिवस पर कौन सा मजदूरों के लिए विशेष कुछ किया जाता है। शायद कुछ ही ऐसे लोग होंगे जिन्हें इस दिन के बारे में पता भी होगा। अगर बात करें मजदूर वर्ग की करें। तो सिर्फ एक लाईन ही है, जो इनके बारे में सबकुछ बयान कर सकती है कि अर्थव्यवस्था का सबसे अहम अंग होने के बाबजूद लगातार इनका शोषण होता ही जा रहा है। लेकिन लॉकडाउन में तो इनकी हालत और भी ज्यादा खराब हो गई है। जिसकी जानकारी का शायद ही आज भारत में कोई मोहताज हो। 

खैर काफी देर से ही सही केंद्र सरकार ने मजदूरो के घर वापस जाने के लिए अनुमति दे दी है। जिसकी विस्तृत नियमावली तैयार की गई है। जो यह बताती है, कि इन मजदूरों को किस प्रकार घर भेजा जाएगा। तथा इन्हें किन किन प्रक्रियाओं से गुजरना होगा। उसके बाद मजदूर अपने राज्य अपने घर जा सकते हैं।

केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को अपने राज्य के मजदूर अन्य राज्यों से वापस लाने तथा अपने राज्य से अन्य राज्यों के मजदूर को भेजने की कागजी तैयारी व अन्य व्यवस्थाओं को लागू करने का जिम्मा दिया है। हालांकि कुछ राज्यों के द्वारा केंद्र के आदेश के पहले से ही मजदूरों को वापस अपने राज्य लाने का मानवीय काम किया जा रहा था। पर तब यह राज्यों के अंतर्गत किया जा रहा था। लेकिन अब पूरे भारत के लिए केंद्रीय गाइडलाइन जारी कर दी गई है। जो सभी राज्यों के मजदूरों को उनके घर भेजने के लिए जारी की गई है। यह बहुत अच्छा कदम है। हालांकि सरकार द्वारा इस काम में काफी समय लग गया। चलो जो हुआ सो हुआ, अब सबकुछ जल्दी और ठीक होना चाहिए। 

आज रेलवे के माध्यम से मजदूरों को उनके शहर पहुंचाने के लिए ट्रेन चलाई गई है। और आने वाले एक दो दिनों में और विशेष ट्रेन चलाने की संभावना है। इसके पहले कुछ राज्यों द्वारा बसों के माध्यम से अपने मजदूरों को लिफ्ट किया गया था। और कुछ राज्यों अभी भी मजदूरों को लिफ्ट कर रहे हैं है।

केंद्रीय गाईडलाइन से सभी राज्यों को आदेश और अनुमति दोनों मिल गए हैं। कि मजदूरों को लिफ्ट करके उनके घर पहुंचायें। लेकिन केंद्रीय सरकार और हमारी कुछ राज्य सरकारें इस बात पर एकमत नहीं हैं कि मजदूरों को रेल से लिफ्ट करें या बसों से। अगर ऐसा ही चलता रहा तो कुछ राज्यों के मजदूर तो अपने घर चले जाएंगे और कुछ सरकारी अनुमति के बाबजूद भी फंसे रह जायेंगे। हमारी सरकारों को जल्द से जल्द इस पर एक राय बनानी होगी। ताकि मजदूरों को जल्दी से जल्दी उनके घर पहुंचाया जा सके।

इसके अलावा सरकारों को इन मजदूरों को लिफ्ट करने से पहले मजदूरों की टेस्टिंग के लिए सटीक कोरोनावायरस टेस्टिंग प्रणाली का सहारा लेना चाहिए। ऐसा न हो कि टेस्टिंग के नाम पर वही स्क्रीनिंग पद्धति अपना ली जाए, जो भारत के एयरपोटों पर लागू की गई थी।  उस स्क्रीनिंग का घाटा यह है कि उससे कई लोग जिन्हें निगेटिव बताया जाता है, वे लैब जांच रिपोर्ट मे पॉज़िटिव पाए जाते हैं। 

क्योंकि यह लोग अपने गांव शहर में जायेंगे और फिर कुछ मजदूर की गलत जांच रिपोर्ट की वजह से इनके पॉजीटिव होने की बात सामने नहीं आ पाई तो इनके परिवार और अन्य लोगों को संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। और इन मजदूरों की संख्या कोई कम नहीं है, लाखों में है। तो ऐसे में इनके साथ इनके परिवार का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए मजदूरों की सटीक लैब जांच ही होनी चाहिए।

साथ ही सरकार को मजदूरों के लिए विशेष राहत पैकेज की घोषणा करनी चाहिए। जिससे इन्हें आर्थिक मदद मिल सके। और अगर हो सके, तो सरकार इन्हें लिफ्ट करने के साथ ही नगद रूपए देकर, बिना बैंकिग प्रकिया के या आधार पे के माध्यम के माध्यम आर्थिक सहायता राशि दे सकती हैं। और पूर्व में भी इनके खातों में सरकार द्वारा जमा किए गए पैसों का लिफ्टिंग सेंटर पर आधार पे के माध्यम से भुगतान किया जा सकता है। जिससे इन्हें काफी सहूलियत होगी। इससे इनके सामने अपने गांव या शहर जाकर पैसे निकलने का झंझट नहीं रहेगा। और सोशल डिस्टेंस सिस्टम भी बना रहेगा।

हमारी केंद्रीय सरकार को और सभी राज्य सरकारों को मजदूरों की लिफ्टिंग में मदद के लिए ऑनलाइन पोर्टल और टोल फ्री सहायता सेवा शुरु करनी चाहिए। जिससे कि वह लोग जो अलग अलग स्थानों पर फंसे हुए हैं। और लॉकडाउन के कारण बाहर निकलने में असमर्थ हैं। वह लोग अपनी लोकेशन व स्थिति सरकार व प्रशासन के साथ साझा कर सकें। तथा सरकार द्वारा इनको भी लिफ्ट किया जा सके। नहीं तो बिना पोर्टल या फोन सेवा के सरकार तक इन लोगों की जानकारी पहुंचना थोड़ा मुश्किल हो जाएगा।

साथ ही सरकार को यह कोशिश करनी चाहिए कि इनके अपने वर्तमान स्थान से रवानगी से पहले जिन मजदूरों का मजदूरी का पारिश्रमिक पेंडिग है। वह इन्हें दिला दिया जाए। यह सरकार की तरफ से इनकी सबसे बड़ी मदद होगी। हालांकि यह पूर्णत कार्यागर नहीं हो पायेगा क्योंकि अधिकांशत मजदूर अपने कार्य स्थलों को छोड़कर अन्य स्थानों पर आ चुके हैं, और इनके कार्यस्थल भी बन्द हैं। पर फिर भी जितने लोगों को उनका पारिश्रमिक मिल जाए उतना ही काफी है।

अब अन्य राज्यों में फंसे लोगों को अपने घर जाने की उम्मीद जगी है। तो सभी चीजें इनके पक्ष में हो। तथा सभी कागजी कार्यवाहियां, आपसी सहमति और अन्य कार्यालयीन प्रक्रियाएं जल्द से जल्द पूरी कर ली जाए तो बेहतर होगा। ताकि ये लोग भी अपने घर जितना हो सके, उतना जल्दी पहुंच जायें। और चैन की सांस लें।





इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अच्छी खबर : इजरायल ने किया Covid-19 का ईलाज ढूंढने का दावा।

कोरोनावायरस को लेकर पूरा विश्व परेशान है। हर देश में कोरोनावायरस के संक्रमितों की संख्या बढ़ रही हैं। और ईलाज न मिलने के कारण लोग डरे हुए हैं। और इसकी रोकथाम का एकमात्र उपाय लॉक डाउन का हर देश सहारा ले रहा है। साथ ही कई देश और संस्था इन बीमारी के ईलाज ढूंढने में लगी है। जिसमें हर किसी को विशेष सफलता हाथ नहीं लगी है। लेकिन इजरायल द्वारा रविवार-सोमवार को जारी आधिकारिक बयान से लोगों के लिए खासी उम्मीद की किरण जगी है। इजरायल द्वारा जारी बयान में उनको बड़ी सफलता मिलने का दावा किया गया है।  रक्षा मंत्री बेनेट ने कहा, "मुझे इस महत्‍वपूर्ण सफलता के लिए संस्थान के कर्मचारियों पर गर्व है, उनकी रचनात्मकता ने इस उपलब्धि की खोज का मार्ग प्रशस्‍त किया"। पूरे विश्व को ईलाज की उम्मीद बंधी है। पूरी दुनिया को त्रस्त कर देने वाले कोरोनावायरस को हराने वाली वैक्सीन का बेसब्री से इंतजार है। इजरायल ने दावा किया है कि Covid-19 के ईलाज को लेकर दुनिया का इंतजार अब खत्म होने ही वाला है। इजरायल ने कोरोना की वैक्सीन बनाने का दावा किया है ।इस बात का आधिकारिक ऐलान इजरायल के रक्षा मंत्री नफताली बेन्नेट किया...

अम्बेडकरवाद क्या है ? सिर्फ दलितों के विकास का माध्यम, या सम्पूर्ण भारत के कल्याणकारी विकासों के साथ अधिकारों की अद्वितीय विचारधारा।

डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर को दलितों का मसीहा कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए जितने प्रयास किये उतने कोई नहीं कर सका, और दलितों की जीवनशैली में सुधार व सामाजिक सुधार का कोई सबसे बड़ा कारण हैं तो वे भीमराव अम्बेडकर ही हैं। बाबा साहब के ज्ञान और कठिन परीक्षण के बाबजूद ही दलित आज नीच उच्च के बंधन से मुक्त हो पाए हैं तथा इन पर होने वाले अत्याचारों में कमी आईं है। चित्र: बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर कुछ लोग दलितों के हित के प्रयासों को ही अम्बेडकरवाद समझते है. उन्हें ऐसा है लगता है कि दलितों के जीवन सुधार के प्रयास ही अम्बेडकरवाद है। उनके लिये अम्बेडकरवाद यहीं तक सीमित है। जबकि ऐसा नहीं है, कि अम्बेडकरवाद एक बहुत विस्तृत विचारधारा है । जिसमें भारत तथा दुनिया के कानूनी सुधारों, समान जीवन के सिद्धांत, आधुनिक विकास, अथार्थता के साथ साथ भौतिकता आदि कई अन्य उपयोगी बातों का समावेश है। माना जाता है कि बाबा साहब अम्बेडकर ने सिर्फ अनुसूचित वर्ग के कल्याण के प्रयास किये, बाबा साहब के बारे में अध्ययन करने पर मालूम होता है कि भारत के उन सभी दबे कुचले, प्रताड़ित, असहाय, ...

अकेले कोविड-19 का ही ईलाज जरूरी है? या अन्य बीमारियों का ईलाज भी निरंतर जारी रखना होगा।

आजकल हर तरफ कोविड-19 का प्रभाव है। इससे कुछ भी अछूता नहीं है। यह प्रभाव अस्पतालों में सबसे ज्यादा है, साथ ही उन अन्य प्रक्रियाओं व सेवाओं पर जो स्वास्थ्य व चिकित्सा से संबंधित हैं। क्योंकि कोविड-19 एक स्वास्थ्य आधारित समस्या है। तो जाहिर सी बात है, कि स्वास्थ्य व चिकित्सा क्षेत्र पर ही इसका सर्वाधिक प्रभाव होगा। लेकिन कई अस्पतालों में कोविड-19 का प्रभाव कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहा है। जैसे कि कई छोटे बड़े शहरों के सरकारी अस्पताल में इस बीमारी के वजह से अन्य रोगों के उपचार की व्यवस्था लगभग खत्म सी ही हो गई है। कई अस्पतालों में तो ओपीडी व्यवस्था ही बंद कर दी गई है। कोविड-19 का प्रभाव इतना ज्यादा है, कि कुछ जिला चिकित्सालय तक में अन्य बीमारियों के मरीजों की भर्ती व ईलाज की प्रकिया को ही लगभग बन्द सा कर दिया गया है। इसके लिए अस्पतालों तथा स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा यह योजना बनाई गई है, कि सिर्फ अति गंभीर स्थिति में ही किसी और बीमारी के मरीज को भर्ती किया जाएगा। बाकि सभी लोग भगवान भरोसे छोड़ दिए गए हैं। इसके अलावा आलम यह है, कि कई जगहों पर वर्षो से लगातार चल रहे बच्चों के टीकाकरण, कई ...