सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

आत्मनिर्भर राहत पैकेज मजदूरों को तत्कालीन राहत देने में असमर्थ रहा।

आत्मनिर्भर पैकेज की घोषणा होते ही अप्रवासी मजदूरों की वर्तमान उम्मीदों को एक और झटका लगा। क्योंकि आत्मनिर्भर पैकेज में जो घोषणायें की गई हैं। वह सभी मजदूरों को तुरंत राहत देने वाली नजर नहीं आ रहीं है। सरकार द्वारा की गई घोषणाओं में भविष्य पर ज्यादा जोर दिया गया है। जबकि सरकार द्वारा  अभी आम गरीब जनता और मजदूरों को सबसे पहले उनके घर पहुंचाना और उनको भरण पोषण के लिए आवश्यक सामान उपलब्ध कराया जाना सबसे ज्यादा जरूरी था। साथ ही सरकार को मजदूरों को अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए नकद पैसे देने की घोषणा भी पैकेज में करनी चाहिए थी। क्योंकि अभी तक मजदूरों को जो कुछ भी आर्थिक मदद मिली है वह मनरेगा योजना में पंजीकृत मजदूरों तक ही सीमित है। लेकिन सरकार शायद उन तमाम मजदूरों को भूल गई है, जो मनरेगा में पंजीकृत नहीं है। तथा तमाम ठेला चालक, गुमटी वाले, दुकानों पर काम करने वाले मजदूर, फैक्ट्री में कार्यरत लेवर आदि की मदद के लिए कोई भी सरकार अभी तक प्रयास करती हुई दिखाई नहीं दी है। इन सभी वर्ग के मजदूरों को, जो आशा प्रधानमंत्री के संबोधन में 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज के जिक्र से बंधी थी,  वह जल्द ही वित्त मंत्री की आत्मनिर्भर पैकैज की घोषणा से निराशा में बदल कर धाराशाई हो गई। क्योंकि वित्त मंत्री द्वारा मजदूरों के लिए आत्मनिर्भर पैकेज में जो घोषणा की गई हैं, वह वर्तमान समय में पूर्णत मददगार नहीं हैं। और कुछ मजदूरों तक ही सीमित रह सकती हैं।
जैसे कि सरकार द्वारा यह घोषणा की गई है कि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत मजदूरों को रहने के लिए सस्ते मकान उपलब्ध कराये जायेंगे और सभी उद्योगों को भी इंसेंटिव दिये  जायेंगे। ताकि वह अपने यहां कार्यरत मजदूरों के लिए क्वार्टर जैसी कोई व्यवस्था बना सके। लेकिन सरकार द्वारा यह नहीं बताया गया है कि इन क्वार्टर का निर्माण कब से शुरू होगा। हालांकि यह योजना जब भी शुरू होगी, भारत के मजदूरों के हित में एक बहुत अच्छा कदम होगा। लेकिन फिलहाल तो यह भविष्य की दृष्टि से की गई घोषणा है। तो वर्तमान हालातो के मद्देनजर इन घोषणाओं का तत्कालीन कोई फायदा नहीं है, इसकी बजाय सरकार को यह सोचना चाहिए था, कि अभी इन मजदूरों के निवास की क्या व्यवस्था की जाये। जो हाइवेज पर रहने को मजबूर हैं और भूख प्यास की मार झेल रहे हैं। या फिर वह लोग जो सड़कों पर अपने मासूमों के साथ हज़ारों के काफिले में पैदल सफर तय किए जा हैं। उन्हें कैसे छत उपलब्ध कराकर सफर करने से रोका जाये। 

इसके अलावा वित्त मंत्री द्वारा कहा गया है कि 8 करोड़ प्रवासी मजदूर जो कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के दायरे में नहीं है या जिनके पास राज्यों की तरफ से मिले गरीबी कार्ड नहीं हैं, वे भी मुफ्त अनाज ले सकेंगे। सरकार बिना राशन कार्ड के भी प्रवासी मजदूरों को उनके परिवार के सदस्य के हिसाब से प्रति व्यक्ति पांच किलो अनाज दो महीने तक मुफ्त उपलब्ध करायेगी। यह अच्छा प्रयास है। लेकिन इससे सिर्फ कुछ मजदूरों तक थोड़ी बहुत ही मदद पहुंचने की संभावना है। पर ज्यादातर मजदूरों को पूर्णत मददगार नहीं हो सकता, क्योंकि यह सोचने की बात है, कि वर्तमान महामारी और काम बंदी के माहौल में क्या सरकार द्वारा दिया जा रहा सिर्फ गेंहू और चावल ही पर्याप्त होगा। बाकी  और सामान जो खाना बनाने में आवश्यक है,  वह सब सामान यह मजदूर कैसे खरीदेंगे। इन सभी का जिक्र सरकार द्वारा पैकेज में नहीं किया गया है। इसके अलावा यह योजना पूर्णत लाभकारी सिद्ध इसलिए भी नही हो सकती क्योंकि अधिकतर मजदूर तो बेचारे अभी अपने मुकाम तक पहुंचने के लिए सफर करने में लगे हुए हैं। या फिर ऐसे इलाकों में फंसे हुए हैं जहां से सरकारी राशन की दुकान के साथ साथ निजी दुकानें भी कोसों दूर हैं। तो सभी मजदूर तक राशन पहुंचना काफी मुश्किल है। तो फिर इस राशन का क्या होगा। जिसमें सरकार 3500 करोड़ खर्च करेगी।
वित्त मंत्री द्वारा इन घोषणाओं के अतिरिक्त एक और घोषणा की गई है, कि केंद्र सरकार स्ट्रीट वेंडर्स को 10 हजार रुपए तक का स्पेशल क्रेडिट मुहैया कराया जाएगा ताकि उनकी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए उनके पास कैश रहे। हालांकि यह रकम वेंडर्स को लोन के तौर पर मिलेगे, जिसका भुगतान तय समय सीमा पर करना होगा। यह सुविधा 50 लाख ऐसे स्ट्रीट वेंडर्स को दी जाएगी, जिनकी आमदनी पर लॉकडाउन की वजह से असर पड़ा है। सरकार एक महीने के भीतर ही इस स्कीम को लागू कर सकती है। लेकिन समस्या यह है कि सरकार किस आधार पर इनके नुकसान की गणना करेगी। साथ ही साथ एक समस्या यह भी है, कि सरकार के पास प्रत्येक स्ट्रीट वेंडर्स का कोई डाटा तो है ही नहीं, तो देखना होगा कि सरकार कैसे तय करेगी कि ऐसे कौन 50 लाख स्ट्रीट वेंडर्स होंगे। जिन्हें इस स्कीम का फायदा मिलेगा। जबकि वास्तविकता में हमारे यहां सड़क किनारे सामान बेचने व कई प्रकार की सेवा देने वालों की संख्या करोड़ों में होगी। लेकिन सरकार सिर्फ 50 लाख वेंडर्स को ही 10-10 हजार रूपए के हिसाब कुल 5 हजार करोड़ रुपए देगी। बाकि वेंडर्स का क्या होगा, फिलहाल इस बारे में सरकार द्वारा कुछ नहीं कहा गया है।।
सरकार द्वारा मछुआरों, पशुपालकों और किसानों को कम ब्याज दरों पर कर्ज की सुविधा देने की घोषणा गई है। ब्याज दरों पर छूट कितनी होगी, यह अभी साफ नहीं है। इस योजना का लाभ किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए दिया जाएगा। सरकार इसके लिए 2 लाख करोड़ रुपए खर्च करेगी। पर समस्या यह है कि कई किसान जिनके पास किसान क्रेडिट कार्ड नहीं है वह इस योजना का लाभ कैसे लेंगे। क्योंकि कई मछुआरे और पशुपालकों का तो किसान क्रेडिट कार्ड बनता ही नहीं है। साथ ही सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया है, इसका लाभ मिलना कब से चालू होगा। इस हिसाब से यह योजना तत्काल मदद देने में सक्षम नहीं है। सरकार को चाहिए कि वह जल्द से जल्द इस योजना को लागू करे, और जिनपर किसान क्रेडिट कार्ड नहीं हैं उनके लिए भी कोई व्यवस्था बनाए। और अभी जरूरी यह था, सरकार को इनकी तत्काल मदद करनी चहिए थी। जो कि इनकी आजीविका और भरण पोषण के लिए मदद देना है। पर सरकार तो कुछ और ही सोच रही है।

सरकार द्वारा कहा गया है,कि मनरेगा के तहत औसत मजदूरी 182 रुपए से बढ़ाकर 200 रुपए कर दी गई है। साथ ही सरकार का कहना है, कि जो मजदूर अपने घर लौटे हैं, वह वहीं रजिस्टर कर काम ले सकते हैं। लेकिन यह सब तो बासी बातें हैं, जिनकी घोषणा तो पहले की जा चुकी थी। फिर दोबारा इन प्रावधानों का जिक्र करने का क्या फायदा है। अगर जिक्र करने की बातें थी तो यह कि अब सरकार इनको अपने काम का बकाया पैसा, जो यह मजदूर अपने फैक्ट्री मालिकों साईट सुपरवाइजरों से नहीं ले पाएं हैं। उसको दिलाने के लिए कोई नियम पारित कर सकती है। या अगर भविष्य की बात भी करें, तो सरकार को योजना बनाकर सभी मजदूरों का इनके कार्य स्थलों पर कागजी पंजीकरण कराने पर जोर देना चाहिए। ताकि इन्हें सारी सुविधा मिल सकें। तथा भविष्य में ऐसी स्थिति को उत्पन्न होने से रोका जा सके। जैसी कि आज है, कि मजदूरों को उनके मालिकों सुपरवाइजरों द्वारा उनका पारिश्रमिक (लॉक डाउन के पहले किए गए मेहनत के काम का पैसा या वेतन) नहीं दिया गया है। और बेचारे मजदूर इनके खिलाफ कोई शिकायत या कार्यवाही भी नहीं कर सकते, क्योंकि यह लोग कोई विशेष कागजी प्रक्रिया के अधीनस्थ अपनी फैक्ट्री या कार्यस्थलों पर कार्यरत नहीं होते हैं। तो सरकार को चाहिए था कि वह इस सम्बन्ध में कोई ठोस कदम उठाती। तो इनके के लिए काफी अच्छा होता।

इस पैकेज से आम मजदूर वर्ग को खासी उम्मीद थी पर सब उम्मीदों पर पानी फिर गया। आखिर किया भी सकता है, क्योंकि उम्मीद पर ही दुनिया कायम है। हो सकता आगे कुछ लाभप्रद घोषणाएं हों। या फिर राज्य सरकारें इन मजदूरों के लिए कुछ मद्दकारी योजना बनाएं। लेकिन फिलहाल यह आत्मनिर्भरता पैकेज तो उस पैकेट की तरह हैं, जो कुछ खाली है, और कुछ कुछ भरा भी है। लेकिन आप फिलहाल भूख के दौरान इसमें से कुछ निकाल कर नहीं खा सकते। 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आखिरकार देर आये, पर दुरुस्त आये। लेकिन कितने दुरुस्त देखना होगा?

आज मजदूर दिवस है। लेकिन मजदूर की आज क्या दशा हो रही है वो तो सब देख ही रहे हैं। वैसे भी हर साल मजदूर दिवस पर कौन सा मजदूरों के लिए विशेष कुछ किया जाता है। शायद कुछ ही ऐसे लोग होंगे जिन्हें इस दिन के बारे में पता भी होगा। अगर बात करें मजदूर वर्ग की करें। तो सिर्फ एक लाईन ही है, जो इनके बारे में सबकुछ बयान कर सकती है कि अर्थव्यवस्था का सबसे अहम अंग होने के बाबजूद लगातार इनका शोषण होता ही जा रहा है। लेकिन लॉकडाउन में तो इनकी हालत और भी ज्यादा खराब हो गई है। जिसकी जानकारी का शायद ही आज भारत में कोई मोहताज हो।  खैर काफी देर से ही सही केंद्र सरकार ने मजदूरो के घर वापस जाने के लिए अनुमति दे दी है। जिसकी विस्तृत नियमावली तैयार की गई है। जो यह बताती है, कि इन मजदूरों को किस प्रकार घर भेजा जाएगा। तथा इन्हें किन किन प्रक्रियाओं से गुजरना होगा। उसके बाद मजदूर अपने राज्य अपने घर जा सकते हैं। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को अपने राज्य के मजदूर अन्य राज्यों से वापस लाने तथा अपने राज्य से अन्य राज्यों के मजदूर को भेजने की कागजी तैयारी व अन्य व्यवस्थाओं को लागू करने का जिम्मा दिया है। हालांक

अम्बेडकरवाद क्या है ? सिर्फ दलितों के विकास का माध्यम, या सम्पूर्ण भारत के कल्याणकारी विकासों के साथ अधिकारों की अद्वितीय विचारधारा।

डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर को दलितों का मसीहा कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए जितने प्रयास किये उतने कोई नहीं कर सका, और दलितों की जीवनशैली में सुधार व सामाजिक सुधार का कोई सबसे बड़ा कारण हैं तो वे भीमराव अम्बेडकर ही हैं। बाबा साहब के ज्ञान और कठिन परीक्षण के बाबजूद ही दलित आज नीच उच्च के बंधन से मुक्त हो पाए हैं तथा इन पर होने वाले अत्याचारों में कमी आईं है। चित्र: बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर कुछ लोग दलितों के हित के प्रयासों को ही अम्बेडकरवाद समझते है. उन्हें ऐसा है लगता है कि दलितों के जीवन सुधार के प्रयास ही अम्बेडकरवाद है। उनके लिये अम्बेडकरवाद यहीं तक सीमित है। जबकि ऐसा नहीं है, कि अम्बेडकरवाद एक बहुत विस्तृत विचारधारा है । जिसमें भारत तथा दुनिया के कानूनी सुधारों, समान जीवन के सिद्धांत, आधुनिक विकास, अथार्थता के साथ साथ भौतिकता आदि कई अन्य उपयोगी बातों का समावेश है। माना जाता है कि बाबा साहब अम्बेडकर ने सिर्फ अनुसूचित वर्ग के कल्याण के प्रयास किये, बाबा साहब के बारे में अध्ययन करने पर मालूम होता है कि भारत के उन सभी दबे कुचले, प्रताड़ित, असहाय, मजदू