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अम्बेडकरवाद क्या है ? सिर्फ दलितों के विकास का माध्यम, या सम्पूर्ण भारत के कल्याणकारी विकासों के साथ अधिकारों की अद्वितीय विचारधारा।

डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर को दलितों का मसीहा कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए जितने प्रयास किये उतने कोई नहीं कर सका, और दलितों की जीवनशैली में सुधार व सामाजिक सुधार का कोई सबसे बड़ा कारण हैं तो वे भीमराव अम्बेडकर ही हैं। बाबा साहब के ज्ञान और कठिन परीक्षण के बाबजूद ही दलित आज नीच उच्च के बंधन से मुक्त हो पाए हैं तथा इन पर होने वाले अत्याचारों में कमी आईं है। चित्र: बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर कुछ लोग दलितों के हित के प्रयासों को ही अम्बेडकरवाद समझते है. उन्हें ऐसा है लगता है कि दलितों के जीवन सुधार के प्रयास ही अम्बेडकरवाद है। उनके लिये अम्बेडकरवाद यहीं तक सीमित है। जबकि ऐसा नहीं है, कि अम्बेडकरवाद एक बहुत विस्तृत विचारधारा है । जिसमें भारत तथा दुनिया के कानूनी सुधारों, समान जीवन के सिद्धांत, आधुनिक विकास, अथार्थता के साथ साथ भौतिकता आदि कई अन्य उपयोगी बातों का समावेश है। माना जाता है कि बाबा साहब अम्बेडकर ने सिर्फ अनुसूचित वर्ग के कल्याण के प्रयास किये, बाबा साहब के बारे में अध्ययन करने पर मालूम होता है कि भारत के उन सभी दबे कुचले, प्रताड़ित, असहाय, ...

अगर निजी चिकित्सा तंत्र भी ईलाज में आगे आये तो कोरोनावायरस पीछे जाये।

अभी तक नोवल कोरोनावायरस पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले चुका है। प्रतिदिन कई नये संक्रमित व्यक्तियों का पता चल रहा है। पर भारत के लिये अच्छी बात ये है, कि प्राप्त आंकड़ों के अनुसार अभी तक भारत में इस बीमारी का प्रसार अन्य देशों की अपेक्षा कम है। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा इसका एक कारण भारत में अन्य विकसित देशों की अपेक्षा कम जांच का होना भी अनुमानित किया गया है। लेकिन यह कारण सही न हो तो ही अच्छा है। क्योंकि यह माना जाता है, कि भारत में अन्य विकसित देशों की अपेक्षा तथा भारत की जनसंख्या के हिसाब से उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधायें कम हैं। तो ऐसी स्थिति में निजी चिकित्सा - अस्पताल यूनिट के साथ निजी लेबॉट्री यूनिट को आगे आकर कोरोनावायरस महामारी को रोकने के लिए उपचार तथा जांच की सेवा में सरकार तथा अन्य संगठनों के साथ मिलकर या स्वतंत्र रूप से शोध, चिकित्सकीय, पैरामेडीकल स्टाफ, तकनीकी सहायता प्रदान कर समाज तथा मानवता के हित में काम करना चाहिए। भारत सरकार द्वारा जब कोरोनावायरस का ईलाज आयुष्मान भारत योजना में शामिल कर लिया गया है। तो भारत के निजी अस्पतालों तथा संक्रमण परीक्षण लै...

सरकार द्वारा प्रदत्त आर्थिक सहायता राहतकारी पर पूर्ण रूप से पर्याप्त नहीं हैं।

आज भी भारत में कहते हैं कि जिसका कोई नहीं उसका भगवान होता है, और आज कोरोनावायरस रूपी महामारी के समय लॉकडाउन स्थिति में सरकार को इस कहावत को सार्थक करना होगा। सरकार को उन सभी लोगों की मदद करनी होगी जिनका कोई नहीं। जो लोग असंगठित क्षेत्र के मजदूर हैं। जिनका रोजीरोटी कमाने का जरिया अभी बंद है। क्योंकि ये लोग अधिकतर मीलों, निर्माण कार्य, मरम्मत आधारित कार्य, विभिन्न टेंडरों में, तथा उधमों में कार्यरत होते हैं। साथ ही साथ हमारी कई सामान्य आवश्यकताओं से लेकर अर्थव्यवस्था के मूलभूत स्तंभों का भार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इसी कामगार वर्ग पर टिका हुआ है। जैसे कच्चा माल तैयार करना, अन्य संयंत्रों में मूल समान तैयार करना, निर्माण कार्य, पैकेजिंग कार्य, माल तथा वाहन परिवहन सेवा, सामाग्री बिक्री के साथ आम सेवाओं माल की सामान्य बाजार तथा समाज तक उपलब्धता आदि। वर्तमान में यह सभी काम बंद हैं, तो ऐसे में इनके सामने कोरोनावायरस के साथ साथ भूख भी एक व्यापक समस्या बनकर खड़ी हो गई है। और इनकी आर्थिक क्षमताओं की परीक्षा तो वह अवसरवादी और मुनाफाखोर लोग और अच्छी तरह से ले रहे हैं, जो सरकारी मनाही के बाबजूद ...