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आखिरकार देर आये, पर दुरुस्त आये। लेकिन कितने दुरुस्त देखना होगा?

आज मजदूर दिवस है। लेकिन मजदूर की आज क्या दशा हो रही है वो तो सब देख ही रहे हैं। वैसे भी हर साल मजदूर दिवस पर कौन सा मजदूरों के लिए विशेष कुछ किया जाता है। शायद कुछ ही ऐसे लोग होंगे जिन्हें इस दिन के बारे में पता भी होगा। अगर बात करें मजदूर वर्ग की करें। तो सिर्फ एक लाईन ही है, जो इनके बारे में सबकुछ बयान कर सकती है कि अर्थव्यवस्था का सबसे अहम अंग होने के बाबजूद लगातार इनका शोषण होता ही जा रहा है। लेकिन लॉकडाउन में तो इनकी हालत और भी ज्यादा खराब हो गई है। जिसकी जानकारी का शायद ही आज भारत में कोई मोहताज हो।  खैर काफी देर से ही सही केंद्र सरकार ने मजदूरो के घर वापस जाने के लिए अनुमति दे दी है। जिसकी विस्तृत नियमावली तैयार की गई है। जो यह बताती है, कि इन मजदूरों को किस प्रकार घर भेजा जाएगा। तथा इन्हें किन किन प्रक्रियाओं से गुजरना होगा। उसके बाद मजदूर अपने राज्य अपने घर जा सकते हैं। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को अपने राज्य के मजदूर अन्य राज्यों से वापस लाने तथा अपने राज्य से अन्य राज्यों के मजदूर को भेजने की कागजी तैयारी व अन्य व्यवस्थाओं को लागू करने का जिम्मा दिया है। हालांक

अकेले कोविड-19 का ही ईलाज जरूरी है? या अन्य बीमारियों का ईलाज भी निरंतर जारी रखना होगा।

आजकल हर तरफ कोविड-19 का प्रभाव है। इससे कुछ भी अछूता नहीं है। यह प्रभाव अस्पतालों में सबसे ज्यादा है, साथ ही उन अन्य प्रक्रियाओं व सेवाओं पर जो स्वास्थ्य व चिकित्सा से संबंधित हैं। क्योंकि कोविड-19 एक स्वास्थ्य आधारित समस्या है। तो जाहिर सी बात है, कि स्वास्थ्य व चिकित्सा क्षेत्र पर ही इसका सर्वाधिक प्रभाव होगा। लेकिन कई अस्पतालों में कोविड-19 का प्रभाव कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहा है। जैसे कि कई छोटे बड़े शहरों के सरकारी अस्पताल में इस बीमारी के वजह से अन्य रोगों के उपचार की व्यवस्था लगभग खत्म सी ही हो गई है। कई अस्पतालों में तो ओपीडी व्यवस्था ही बंद कर दी गई है। कोविड-19 का प्रभाव इतना ज्यादा है, कि कुछ जिला चिकित्सालय तक में अन्य बीमारियों के मरीजों की भर्ती व ईलाज की प्रकिया को ही लगभग बन्द सा कर दिया गया है। इसके लिए अस्पतालों तथा स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा यह योजना बनाई गई है, कि सिर्फ अति गंभीर स्थिति में ही किसी और बीमारी के मरीज को भर्ती किया जाएगा। बाकि सभी लोग भगवान भरोसे छोड़ दिए गए हैं। इसके अलावा आलम यह है, कि कई जगहों पर वर्षो से लगातार चल रहे बच्चों के टीकाकरण, कई

आपदा में टेलीकॉम और ब्रॉडकास्टिंग सेवा मुफ्त हो, तो बात बने।

आज इस आपदा की स्थिति में उन टेलीकॉम कंपनी तथा डीटीएच कंपनी को अपनी सुविधाएं पूर्णता मुफ्त कर देनी चाहिए थी। जो भारत में कार्यरत हैं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। सोचने वाली बात है, जब यह कम्पनियां अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए महीनों-सालों तक असीमित सुविधाओं को मुफ्त देने का साहस रखती हैं, और अपनी ग्राहक श्रृंखला बढ़ाने के लिए समय समय पर तमाम सस्ते व मुफ्त सेवाओं के ऑफर देती रहती हैं। तो आज इस आपदा की घड़ी में भी इन कम्पनियों को अपनी सेवाएं मुफ्त नहीं कर देना चाहिए?  इससे भारत को और भारत की जनता को इस कोरोनाकाल व लॉकडाउन का सामना करने में काफी मदद मिलेगी। इसके लिए सरकार को भी आगे आकर प्रयास करने होंगे। अभी जब तक लॉकडाउन है, तब तक के लिए, भारत सरकार तथा ट्राई को टेलीकॉम व ब्रॉडकास्टिंग कम्पनियों से बात कर दूरसंचार व प्रसारण सेवाओं को मुफ्त कराने पर विचार करना चाहिए, क्योंकि लॉकडाउन के दौरान इन सेवाओं की महत्ता व आवश्यकता और बढ़ गई है। इसके अलावा वर्तमान हालातों में इन सुविधाओं को मुफ्त किया जाना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि कोविड-19 के संक्रमण के खतरे से पूरा भारत लॉकडाउन है। बिना काम लोग

अप्रैल.29.2020 को क्या वाकई कोई ग्रह पृथ्वी से टकराएगा? इस बारे में क्या हैं वैज्ञानिक राय?

अभी काफी दिनो से सोशल मीडिया पर एक पोस्ट खूब आग की तरह धड़ल्ले से फैल रहीं है। और हम में से ही कई लोग इस खबर को बिना कुछ सोचे समझे फॉरवर्ड कर आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। वर्तमान समय में ऑनलाइन से लेकर ऑफलाइन लाईफ में यह पोस्ट सेकंड नंबर ट्रेंडिंग चर्चा का विषय बन चुका है। यह खबर या पोस्ट इये है, कि कोई ग्रह या पिंड धरती की ओर तेजी से आ रहा है। और 29 अप्रैल 2020 को यह ग्रह या पिंड जो भी है, पृथ्वी से टकरा जायेगा। और सब कुछ तबाह हो जाएगा। इस बात को लेकर लोग खासे परेशान हैं, और परेशान होना भी लाजमी है क्योंकि जैसा कि वायरल पोस्ट में बताया गया है, अगर वैसा होता है, तो कोई व्यक्ति विशेष की जान को ही नहीं, बल्कि पूरी पृथ्वी के अस्तित्व को ही खतरा पैदा हो सकता है। लोग रोज-ब-रोज इस बात को लेकर परेशान हैं, कि यह और पास आ गया है, अब और पास। और सोशल मीडिया पर रोज इसके आने के कम होते हुए दिन गिने जा रहे हैं। जैसे जैसे इसके पृथ्वी के पास आने का समय तारीख नजदीक आ रहे हैं, वैसे ही लोगों में अलग अलग बातों का पनपना शुरू हो गया है। साथ ही डर व बेचैनी का माहौल बढ़ रहा है। यह माहौल उन लोगों के लि

अब मजदूरों की मदद के लिए सरकार को आदेश पारित करना चाहिए, आग्रह से काम नहीं चलेगा।

अब भारत में मजदूरों की समस्या लॉकडाउन की वजह से बढ़ती ही जा रही है,  यह भी सच है, कि अगर लॉक डाउन नहीं होता तो उनकी समस्या और बढ जाती। लेकिन लॉक डाउन को एक महीने से ज्यादा समय हो गया है। पर सरकार की तरफ से अभी तक मजदूरों के भरण पोषण के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किये गये हैं। ऐसा कोई भी सरकारी आदेश सरकार द्वारा नहीं दिया गया है, जो कि इन मजदूरों से काम लेने वालों पर, उनके अधीन कार्यरत मजदूरों की आर्थिक या स्वास्थ्य के प्रति जिम्मेदारी को दर्शाता हो। या कम से कम इन्हें अपने मजदूरों के वेतन भुगतान करने के लिये बाध्य करता हो। अभी एक महीना हो जाने के बाद भी कई मजदूर अपने पुराने वेतन (जिसका लॉक डाउन की वजह से भुगतान नहीं हो पाया था), उस मेहनत की कमाई को पाने के लिये तरस रहे हैं। पर उनके मालिक का अता पता ही नहीं हैं। तथा उन तमाम अप्रवासी मजदूरों के वर्तमान वेतन का क्या होगा, जो दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता जैसे महानगरों व अन्य बड़ी जगह पर कार्यरत थे, पर लॉक डाउन की वजह से बिना वेतन लिये अपने घर जा चुके हैं या अभी भी राज्यों की सीमाओं के कैंप में रह रहे है। या लॉकडाउन के कारण कहीं और फ

अकीकत के महीने रमजान की कोविड-19 और लॉकडाउन में जरूरत और अहमियत।

आज चांद के दीदार के साथ ही पाक रमजान और इबादत का दौर शुरु हो जायेगा। कहा जाता है, कि रमजान के महीने में इबादत करने से 70 फीसदी ज्यादा सुकून और सबाब मिलता है। रमजान का महीना इस्लामिक साल के सभी महीनों में सबसे ज्यादा पाक महीना माना जाता है। रमजान ही वो महीना है जिसमें पाक क़ुरआन शरीफ नाजिल हुआ था। जिसमें नमाज जकात के साथ तमाम वो बातें शामिल हैं, जिनमें सारी कायनात समाई हुई है। लेकिन इस रमजान में लॉकडाउन है। तो ऐसे वक्त में रमजान की अहमियत और जरूरत पहले से और ज्यादा है। क्योंकि रमजान में लोग सुकून और सबाब पाते हैं, जिसकी अभी सख्त अहमियत है। और जो सबाब और सुकून पाने का जरिया है, उसकी हर जरूरतमंद को बहुत जरूरत है। तो ऐसे वक्त में रमजान का आना अपने आप में बहुत अहम और खास है। हालिया हालातों में वजू की अहमियत कितनी ज्यादा है। इस्लाम में नमाज को फर्ज बताया गया है। नमाज़ अदायगी की अपनी मजहबी अहमियत तो है, साथ ही साथ नमाज़ में वजू की अहमियत बहुत ज्यादा है। जो कि आज कोविड 19 के दौर में समझी जा सकती है। दिन में पांच बार नमाज़ अदा की जाती है। जो कि पांच बार वजू की हिदायत देती है। इन पांच

अधिक विकसित क्षेत्रों में कोरोनावायरस के संक्रमित मरीज ज्यादा मिलने का कारण क्या है?

अभी तक भारत में कोरोनावायरस के 17000 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, और आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। अब कोरोनावायरस के मामले पहले की अपेक्षा और तेजी से सामने आ रहे हैं। और विकसित क्षेत्रों में अधिक मामले तेजी से बढ़ रहे ही। जैसे अकेले मुंबई ओर दिल्ली दोनों में ही यह आंकड़ा 2-2 हजार से ज्यादा हो चुका है। जिससे देखने को यह मिला है कि जो शहर- राज्य ज्यादा संपन्न हैं। वहां वायरस का प्रभाव और प्रसार दोनों ही पिछड़े क्षेत्रों की अपेक्षा ज्यादा है। हालांकि हो सकता है कि इस आसामान प्रसार के पीछे कोई कारण न हो, या हो सकता है, है कि कई सारे कारण हों। कोरोनावायरस के ज्यादा विकसित शहरों और राज्यों में ज्यादा प्रभाव का कारण, कोरोनावायरस लैबों की इन क्षेत्रों में ज्यादा या कम मात्रा में उपलब्धता का होना हो सकता है। या अधिक संपन्न शहरों में कोरोनावायरस टेस्टिंग लैब की अधिक संख्या होने से ज्यादा मात्रा में सैंपल की टेस्टिंग हो पाने के कारण ज्यादा सटीक जानकारी का मिलना हो। क्योंकि ज्यादा लैब होने से ज्यादा सैंपल टेस्ट किये जा सकते हैं। जिससे से अधिक से अधिक लोगों की कोरोनावायरस रिपोर्ट तैयार की ज

अब कोरोनावायरस टेस्टिंग भी बढ़ानी होगी सिर्फ लॉकडाउन बढ़ाने से कोरोना नहीं रुकेगा।

सरकार ने लॉकडाउन को आगे बड़ा दिया है, पर सरकार को इसके साथ ही कोरोना जांच की क्षमता को भी बढ़ाना होगा। क्योंकि सिर्फ लॉक डाउन बढ़ाने से काम नहीं बनेगा। सरकार को जांच की और लैब खोलनी होगी जिससे की अधिक से अधिक जांच हो सके तथा ज्यादा से ज्यादा संक्रमित मरीजों का पता चल सके। साथ ही साथ उन्हें आइसोलेट कर और लोगो तक महामारी को फैलने से रोका जा सके, अन्यथा एकदम आंकड़े सामने आने पर समस्या और विकराल रूप धारण कर सकती है। लॉक डाउन से भारत को फायदा तो हुआ है। लेकिन कम जांच की वजह से भारत में एकदम मरीजों की संख्या में इजाफा होने का अनुमान लगाया जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भारत में कोरोना की जांचों का कम होना चिंता का विषय बताया है, तथा एक अन्य अनुसंधान संस्था Cov-Ind 19 ने भी भारत में जांच संबंधी विषय में लगभग विश्व स्वास्थ्य संस्थान जैसी ही राय दी है। भारत में लगभग 135 करोड़ जनसंख्या है, और आज दिनांक 17. अप्रैल. 2020  की स्थिति में भारत में कुल सरकारी लैबों की संख्या 176 और कुल प्राइवेट लैब 80 हैं। साथ ही 3 सरकारी कलेक्शन साईट हैं। यानी की 1 करोड़ आबादी पर कुल 2 लैब भी उप

अम्बेडकरवाद क्या है ? सिर्फ दलितों के विकास का माध्यम, या सम्पूर्ण भारत के कल्याणकारी विकासों के साथ अधिकारों की अद्वितीय विचारधारा।

डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर को दलितों का मसीहा कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए जितने प्रयास किये उतने कोई नहीं कर सका, और दलितों की जीवनशैली में सुधार व सामाजिक सुधार का कोई सबसे बड़ा कारण हैं तो वे भीमराव अम्बेडकर ही हैं। बाबा साहब के ज्ञान और कठिन परीक्षण के बाबजूद ही दलित आज नीच उच्च के बंधन से मुक्त हो पाए हैं तथा इन पर होने वाले अत्याचारों में कमी आईं है। चित्र: बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर कुछ लोग दलितों के हित के प्रयासों को ही अम्बेडकरवाद समझते है. उन्हें ऐसा है लगता है कि दलितों के जीवन सुधार के प्रयास ही अम्बेडकरवाद है। उनके लिये अम्बेडकरवाद यहीं तक सीमित है। जबकि ऐसा नहीं है, कि अम्बेडकरवाद एक बहुत विस्तृत विचारधारा है । जिसमें भारत तथा दुनिया के कानूनी सुधारों, समान जीवन के सिद्धांत, आधुनिक विकास, अथार्थता के साथ साथ भौतिकता आदि कई अन्य उपयोगी बातों का समावेश है। माना जाता है कि बाबा साहब अम्बेडकर ने सिर्फ अनुसूचित वर्ग के कल्याण के प्रयास किये, बाबा साहब के बारे में अध्ययन करने पर मालूम होता है कि भारत के उन सभी दबे कुचले, प्रताड़ित, असहाय, मजदू

अगर निजी चिकित्सा तंत्र भी ईलाज में आगे आये तो कोरोनावायरस पीछे जाये।

अभी तक नोवल कोरोनावायरस पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले चुका है। प्रतिदिन कई नये संक्रमित व्यक्तियों का पता चल रहा है। पर भारत के लिये अच्छी बात ये है, कि प्राप्त आंकड़ों के अनुसार अभी तक भारत में इस बीमारी का प्रसार अन्य देशों की अपेक्षा कम है। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा इसका एक कारण भारत में अन्य विकसित देशों की अपेक्षा कम जांच का होना भी अनुमानित किया गया है। लेकिन यह कारण सही न हो तो ही अच्छा है। क्योंकि यह माना जाता है, कि भारत में अन्य विकसित देशों की अपेक्षा तथा भारत की जनसंख्या के हिसाब से उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधायें कम हैं। तो ऐसी स्थिति में निजी चिकित्सा - अस्पताल यूनिट के साथ निजी लेबॉट्री यूनिट को आगे आकर कोरोनावायरस महामारी को रोकने के लिए उपचार तथा जांच की सेवा में सरकार तथा अन्य संगठनों के साथ मिलकर या स्वतंत्र रूप से शोध, चिकित्सकीय, पैरामेडीकल स्टाफ, तकनीकी सहायता प्रदान कर समाज तथा मानवता के हित में काम करना चाहिए। भारत सरकार द्वारा जब कोरोनावायरस का ईलाज आयुष्मान भारत योजना में शामिल कर लिया गया है। तो भारत के निजी अस्पतालों तथा संक्रमण परीक्षण लै

सरकार द्वारा प्रदत्त आर्थिक सहायता राहतकारी पर पूर्ण रूप से पर्याप्त नहीं हैं।

आज भी भारत में कहते हैं कि जिसका कोई नहीं उसका भगवान होता है, और आज कोरोनावायरस रूपी महामारी के समय लॉकडाउन स्थिति में सरकार को इस कहावत को सार्थक करना होगा। सरकार को उन सभी लोगों की मदद करनी होगी जिनका कोई नहीं। जो लोग असंगठित क्षेत्र के मजदूर हैं। जिनका रोजीरोटी कमाने का जरिया अभी बंद है। क्योंकि ये लोग अधिकतर मीलों, निर्माण कार्य, मरम्मत आधारित कार्य, विभिन्न टेंडरों में, तथा उधमों में कार्यरत होते हैं। साथ ही साथ हमारी कई सामान्य आवश्यकताओं से लेकर अर्थव्यवस्था के मूलभूत स्तंभों का भार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इसी कामगार वर्ग पर टिका हुआ है। जैसे कच्चा माल तैयार करना, अन्य संयंत्रों में मूल समान तैयार करना, निर्माण कार्य, पैकेजिंग कार्य, माल तथा वाहन परिवहन सेवा, सामाग्री बिक्री के साथ आम सेवाओं माल की सामान्य बाजार तथा समाज तक उपलब्धता आदि। वर्तमान में यह सभी काम बंद हैं, तो ऐसे में इनके सामने कोरोनावायरस के साथ साथ भूख भी एक व्यापक समस्या बनकर खड़ी हो गई है। और इनकी आर्थिक क्षमताओं की परीक्षा तो वह अवसरवादी और मुनाफाखोर लोग और अच्छी तरह से ले रहे हैं, जो सरकारी मनाही के बाबजूद